कुंभ में 7 दिन से भटकती मां से मिलने आया: रेखा बोलीं- घर लेकर चलो; पति बोले- ये हमारी पत्नी नहीं; बेटे का जवाब- हम DNA को तैयार

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कुंभ में 7 दिन से भटकती मां से मिलने आया:  रेखा बोलीं- घर लेकर चलो; पति बोले- ये हमारी पत्नी नहीं; बेटे का जवाब- हम DNA को तैयार

कुंभ में 7 दिन से भटकती मां से मिलने आया: रेखा बोलीं- घर लेकर चलो; पति बोले- ये हमारी पत्नी नहीं; बेटे का जवाब- हम DNA को तैयार

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प्रयागराज31 मिनट पहलेलेखक: राजेश साहू

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रेखा इस समय सेक्टर 7 में सामाजिक कल्याण विभाग के कैंप में हैं। उनसे मिलने छोटा बेटा आया है।

महाकुंभ में 12 फरवरी से भटकती रेखा द्विवेदी 19 फरवरी को अपने छोटे बेटे से मिली। बेटे को देखते ही वह खुश हो गई। उसके घुटने पर अपना सिर रख दिया। जोर से हाथ पकड़ लिया। कहने लगी- मुझे यहां से घर ले चलो। मेरा इलाज करवाओ। मैं बहुत बीमार हूं। बेटा यह सबकुछ असहजता के साथ देख रहा था। क्योंकि मां जिस घर पर ले चलने की बात कह रहीं, उस घर से उस बेटे को भी निकाला जा चुका है। वह किराए पर एक कमरे में रहने को मजबूर है।

दैनिक NEWS4SOCIALकी टीम ने 15 फरवरी को रेखा द्विवेदी के दुख-दर्द को लेकर एक पूरी रिपोर्ट छापी। इसके बाद रेखा के 4 में से 2 बेटे एक्टिव हुए। सबसे छोटे बेटे मां से मिलने पहुंचे। इसके बाद क्या कुछ हुआ? रेखा की तबीयत कैसी है? आगे वह कहां रहेंगी? पति ने क्या कुछ कहा? आइए सबकुछ एक तरफ से जानते हैं…

रेखा अब सेक्टर 7 में सामाजिक कल्याण विभाग के कैंप में हैं।

पहले सांस लेने में दिक्कत अब गला सूख रहा 80 साल की रेखा द्विवेदी 12 फरवरी को मेले में गुम हो गईं। आसपास के लोगों ने उन्हें सेक्टर 9 के खोया-पाया केंद्र में पहुंचाया। लेकिन कोई भी उन्हें खोजने के लिए नहीं आया। रात में उनकी तबीयत बिगड़ी तो खोया-पाया केंद्र के संदीप ने एंबुलेंस के जरिए रेखा को मेले की केंद्रीय हॉस्पिटल में भेजवा दिया। यहां उनका इलाज शुरू हुआ। 13 और 14 फरवरी को रेखा इसी हॉस्पिटल में भर्ती रहीं। सांस लेने में जो दिक्कत आ रही थी वह कुछ हद तक ठीक हुई। हम हॉस्पिटल में रेखा जी का हालचाल लेने लगातार जाते रहे।

15 फरवरी को दैनिक NEWS4SOCIALमें रिपोर्ट छपी। मेले में ही मौजूद सामाजिक कल्याण विभाग तक खबर पहुंची। वहां से अगले दिन अधिकारी पहुंचे और रेखा द्विवेदी को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज करवाकर अपने साथ ले गए। वह अब सेक्टर 7 में सामाजिक कल्याण विभाग के कैंप में ही हैं। यहां उनकी तबीयत में बहुत सुधार नहीं है। अभी भी गला सूखने की जो शिकायत है वह बरकरार है।

सामाजिक कल्याण विभाग के अधिकारी आनंद सिंह रेखा से मिलने हॉस्पिटल आए थे।

हम बेटे को लेकर पहुंचे तो वह खुश हो गई 18 फरवरी को रेखा द्विवेदी के छोटे बेटे दक्षम द्विवेदी रायपुर से प्रयागराज आए। हम उन्हें लेकर उनकी मां के पास पहुंचे। बेटे को देखते ही वह खुश हो गई। दोनों हाथ आगे बढ़ा दिया। तेजी से हाथ को पकड़ लिया। कुछ देर हाथ पकड़ने के बाद रेखा ने बेटे को अपने सामने वाली कुर्सी पर बैठाया और उसके घुटने पर अपना सिर रख दिया। वह बार-बार यहीं बात बोलतीं, अब मुझे छोड़कर मत जाना। अब मुझे घर लेकर चलो। यहां से किसी भी हालत में हटाओ। मेरा गला सूख रहा है।

13 और 14 फरवरी को रेखा हॉस्पिटल में भर्ती रहीं।

रेखा के पति ने कहा- वह हमारी पत्नी नहीं हम जब रेखा से उनके बेटे को मिलाने पहुंचे थे उसके पहले ही रेखा के पति चंद्रशील द्विवेदी से बात कर ली थी। चंद्रशील इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील रहे हैं। बातचीत में उन्होंने रेखा को अपनी पत्नी मानने से इनकार किया। वह कहते हैं, “रेखा पहले से शादी-सुदा हैं। हमसे इनकी भेंट हुई थी। हमारे मकान में यह किराए पर रहती थीं। हमारी पत्नी का भी नाम रेखा है, उसी का लाभ उठाना चाहती हैं। वह हर जगह झूठ बोलती हैं, सबसे झगड़ा करती हैं, हमसे भी इनका मुकदमा चल रहा। इस वक्त उम्र का फायदा उठा रही हैं। हमने कुछ दिन पहले इन्हें कटरा वाले मकान पर रखा था लेकिन फिर से चली गईं।”

रेखा द्विवेदी को एम्बुलेंस के जरिए सेक्टर 3 में केंद्रीय चिकित्सालय भेज दिया गया।

सेक्टर 7 में जब रेखा और उनके बेटे दक्षम मिले तो हमने चंद्रशील की बात को बताई। बेटे दक्षम कहते हैं, “पिता जी एकदम झूठ बोल रहे हैं। आप हमारे चाचा इंद्रशील और विनयशील द्विवेदी से पूछ सकते हैं। दोनो चाचा यहीं बेली में रहते हैं। मोहल्ले वाले भी बता देंगे कि यह उनकी पत्नी और हम सब इनके बच्चे हैं। चाहे तो डीएनए टेस्ट करवा लीजिए।”

रेखा से हमने कहा कि चंद्रशील द्विवेदी ने तो आपको पत्नी मानने से इंकार कर दिया। वह कहती हैं, “मनुष्य तो हैं हम, मर रहे हैं। यहां कोई कोर्ट का विवाद नहीं है, यहां जान का विवाद है। हमारी जान बचाओ। गला ठीक करवा दो। सुबह से सूखा पड़ा है। हमें हॉस्पिटल लेकर चलो। इलाज करवाओ जल्दी से जल्दी।”

रेखा द्विवेदी ने कहा- हमको खुद नहीं पता कि हम मेले में कैसे पहुंच गए।

बेटा बोला- हम कहां ले जाएं, हमें तो घर से निकाल दिया रेखा बार-बार अपने बेटे दक्षम से यह भी कह रही थीं कि हमें यहां से घर ले चलो। कोई किसी का नहीं है तो क्या मर जाएं। घर चलो, हम सब ठीक कर देंगे। हमने दक्षम से पूछा कि आप इन्हें घर क्यों नहीं ले जाते? वह कहते हैं, हम अपनी मां को अपने कटरा वाले घर ले जाना चाहते हैं. लेकिन पिता जी ने हमें ही घर से निकाल दिया है। फिर हम कैसे ले जाएं। वहां हमारे सगे भाई प्रियम द्विवेदी परिवार के साथ रहते हैं। वहीं उनके ससुराल के लोग रहते हैं, सबने अवैध कब्जा कर रखा है।

दक्षम आगे कहते हैं, पिता जी कटरा वाले घर पर हमें ही नहीं जाने देते। हमें कानूनी अधिकार मिल जाए तो हम खुद मां को लेकर जाएं। अभी हम रायपुर में एक किराए के घर पर रहते है। मां के बारे में जैसे ही सूचना मिली, हम वहां से चले आए। अगर कोई नहीं ले जाएगा तो हम अपने साथ रायपुर ले जाएंगे। पहले वहां व्यवस्था बनानी होगी।

तीसरे बेटे ने पिता को जिम्मेदार बताया

हमने रेखा के तीसरे बेटे सक्षम द्विवेदी से भी बात की। वह अपनी मां और पिता को लेकर कुछ चीजें क्लियर करते हैं। वह कहते हैं, रेखा द्विवेदी के पति चंद्रशील द्विवेदी पूर्ण रूप से स्वस्थ और संपन्न हैं। रेखा द्विवेदी का पूर्ण उत्तर दायित्व चंद्रशील द्विवेदी का है। उनके पास नया कटरा, तुलसी नगर उरई, नौकुचियाताल और नैनीताल में अचल संपत्ति है। उन्होंने हमें और छोटे भाई दक्षम को घर से निकाल दिया है। बेड़े भाई शिवम भी घर के माहौल से परेशान होकर दूसरी जगह रहते हैं। कटरा वाले घर पर हमारे दूसरे भाई प्रियम द्विवेदी का नियंत्रण है, वह एमपी में लेक्चरर हैं। उनके ससुराल के लोग अब घर में रहते हैं।

सक्षम विवाद से जुड़ी एक और घटना के बारे में बताते हैं। वह कहते हैं, मेरा सबसे छोटा भाई रक्षम 6 अप्रैल 2010 को घर छोड़कर चला गया था। उस पूरे मामले की सीबीआई जांच हुई थी। पिता के मामले में ऐसे ही गैर जिम्मेदाराना रवैए की रिपोर्ट पूर्व में भी हो चुकी है। अगर किसी भी तरह की जानकारी चाहिए तो आप हमारे चाचा इंद्रशील और विनयशील द्विवेदी से भी हासिल कर सकते हैं।

अधिकारी बोले- कोई नहीं आया तो हम अपने पास रखेंगे

हमने समाज कल्याण के अधिकारी आनंद सिंह से बात की। वह कहते हैं, हमें जब रेखा जी के बारे में जानकारी मिली तो हम हॉस्पिटल पहुंचे। जब तक वह हॉस्पिटल में रहीं तब तक हमने वहां एक कर्मचारी लगाया। जब डॉक्टर ने डिस्चार्ज किया तो हम उन्हें अस्थाई आश्रम में ले आए। बेटा आया तो मुलाकात हुई। अब अगर इनके परिवार का कोई भी व्यक्ति इन्हें ले जाने को तैयार नहीं हुआ तो हम इन्हें अपने स्थायी आश्रम में ले जाएंगे और इनके रहने, खाने और इलाज की पूरी व्यवस्था करेंगे।

फिलहाल, रेखा के जीवन का संघर्ष जारी है। यह संघर्ष उनके जीवन के अंतिम सालों में आया है। अभी की जो स्थिति है उसमें इस संघर्ष का अंत नजर नहीं आता।

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