कानाफूसी: तो क्या सृजन घोटाले की फाइल खुल रही है? नीतीश की बैठक के बाद सियासी गलियारे में सुगबुगाहट तेज
Bihar Political News in Hindi : बिहार की राजनीति एक बार फिर से गरम हो चुकी है। सीएम नीतीश कुमार का राजभवन जाना, फिर विधायकों से वन टू वन बात करना, इन दो वजहों से कई तरह की कानाफूसी चालू हो गई है। इन्हीं में से एक है सृजन घोटाले की फाइल पर खुसर फुसर…
पटना: कहने को भले राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शुक्रवार से विधायकों से मिल रहे हैं। पर सच्चाई यह है कि नीतीश कुमार मुलाकात का दौर बुधवार से ही शुरू कर रखा है। यह दीगर कि पहले दिन से वैसे विधायक से वन टू वन बात हो रही थी जो मंत्रिपरिषद में शामिल थे। शुक्रवार से सामान्य रूप से विधायक रहे जदयू नेता नीतीश कुमार से मुलाकात कर रहे थे। जो बात विधायकों से निकल कर आई वह यही कि क्षेत्र में योजनाओं का क्रियान्वयन ठीक से हुआ या नहीं ? जनता का मूड राजद में जाने से जदयू के प्रति सामान्य है या नाराज चल रहे हैं। राजनीतिक गलियारों में चल रही चर्चा को मानें तो जो जदयू विधायकों बता रहे हैं वो सब प्रायोजित है। इन बातों को कहने के लिए वन टू वन बात करने की कोई जरूरत थी। यह कॉमन सवाल था सभी एक साथ जवाब दे सकते थे।
कही सृजन का भूत सवार तो नहीं हुआ?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक अणे मार्ग में जदयू विधायकों को मिलने के लिए बुलाया था और वह भी वन टू वन। उसके बाद तुरंत राज्यपाल से मिलना, और इसके बाद सुशील मोदी का अचानक से राजभवन में आना। इससे किसी खेल की चर्चा तेज हो गई है, खास कर सृजन घोटाले की तरफ। ऐसा इसलिए कि तब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे और सुशील मोदी उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री भी। हालंकि यह कहा जा रहा है कि राजद से गठबंधन के बाद जदयू ने नाता तोड कर भाजपा से जुड़ने का एक मात्र मकसद था सृजन घोटाले की लीपापोती। कहते हैं जब सारे कागजात दुरुस्त हो गए तो फिर भाजपा से नाता तोड़ डाला। अब नीतीश पीएम नरेंद्र मोदी के विरुद्ध ही मुहिम चला रहे हैं।
क्या महागठबंधन में जाने के बाद जनता की राय शुमारी तो नहीं?
जदयू विधायकों से कॉमन प्रश्न पूछा गया कि राजद के साथ जदयू के गठबंधन को जनता किस नजर से देख रही है? ऐसा इसलिए कि मैंडेट एनडीए को था। चर्चा है कि इसके जवाब विधानसभा वार भिन्नता लिए हुए है। सवर्ण बाहुल्य इलाके में साफ नाराजगी है। इसलिए ऐसे विधायक जो सवर्णों के वोट से जीत कर आए हैं, उनके अनुभव अच्छे नहीं निकले। सो, सीएम नीतीश को मिला फीडबैक मिक्स टाइप का है।
क्या फिर राजद जदयू विलय पर अंतिम राय?
चर्चा यह भी है कि महागठबंधन की सरकार बनते ही नीतीश कुमार विलय कर एक झंडा और एक संविधान के साथ चुनाव में जाना चाहते थे। तब अधिकांश विधायक विलय के पक्ष में नहीं थे। तब न तो उपेंद्र कुशवाहा इसके पक्ष में थे और न ही आरसीपी सिंह। इन दोनों ने पार्टी के अंदर अपने-अपने नजदीकी विधायकों से इस विलय का जबरदस्त विरोध कराया था। अब चुंकि विलय को ले कर विरोध के स्वर नहीं है तो इस बहाने नए सिरे से विलय पर राय लेने की भी चर्चा है। उधर पार्टी के मुताबिक सीएम नीतीश विधायकों से विकास कार्यों और लोगों की प्रतिक्रियाओं की जानकारी ले रहे है। यह सब मिशन 2024 की तैयारी के बरक्स किए जा रहे हैं। इन्हें रणनीति बताई जा रही है कि किस कदर एक रह कर भाजपा का सामना करना है। नीतीश ने नेताओं को कहा है कि संगटन की मजबूती पर अभी से ही अपने क्षत्र के पंचायत स्तर तक ध्यान दें। बूथ को मजबूत करें।
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कही सृजन का भूत सवार तो नहीं हुआ?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक अणे मार्ग में जदयू विधायकों को मिलने के लिए बुलाया था और वह भी वन टू वन। उसके बाद तुरंत राज्यपाल से मिलना, और इसके बाद सुशील मोदी का अचानक से राजभवन में आना। इससे किसी खेल की चर्चा तेज हो गई है, खास कर सृजन घोटाले की तरफ। ऐसा इसलिए कि तब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री थे और सुशील मोदी उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री भी। हालंकि यह कहा जा रहा है कि राजद से गठबंधन के बाद जदयू ने नाता तोड कर भाजपा से जुड़ने का एक मात्र मकसद था सृजन घोटाले की लीपापोती। कहते हैं जब सारे कागजात दुरुस्त हो गए तो फिर भाजपा से नाता तोड़ डाला। अब नीतीश पीएम नरेंद्र मोदी के विरुद्ध ही मुहिम चला रहे हैं।
क्या महागठबंधन में जाने के बाद जनता की राय शुमारी तो नहीं?
जदयू विधायकों से कॉमन प्रश्न पूछा गया कि राजद के साथ जदयू के गठबंधन को जनता किस नजर से देख रही है? ऐसा इसलिए कि मैंडेट एनडीए को था। चर्चा है कि इसके जवाब विधानसभा वार भिन्नता लिए हुए है। सवर्ण बाहुल्य इलाके में साफ नाराजगी है। इसलिए ऐसे विधायक जो सवर्णों के वोट से जीत कर आए हैं, उनके अनुभव अच्छे नहीं निकले। सो, सीएम नीतीश को मिला फीडबैक मिक्स टाइप का है।
क्या फिर राजद जदयू विलय पर अंतिम राय?
चर्चा यह भी है कि महागठबंधन की सरकार बनते ही नीतीश कुमार विलय कर एक झंडा और एक संविधान के साथ चुनाव में जाना चाहते थे। तब अधिकांश विधायक विलय के पक्ष में नहीं थे। तब न तो उपेंद्र कुशवाहा इसके पक्ष में थे और न ही आरसीपी सिंह। इन दोनों ने पार्टी के अंदर अपने-अपने नजदीकी विधायकों से इस विलय का जबरदस्त विरोध कराया था। अब चुंकि विलय को ले कर विरोध के स्वर नहीं है तो इस बहाने नए सिरे से विलय पर राय लेने की भी चर्चा है। उधर पार्टी के मुताबिक सीएम नीतीश विधायकों से विकास कार्यों और लोगों की प्रतिक्रियाओं की जानकारी ले रहे है। यह सब मिशन 2024 की तैयारी के बरक्स किए जा रहे हैं। इन्हें रणनीति बताई जा रही है कि किस कदर एक रह कर भाजपा का सामना करना है। नीतीश ने नेताओं को कहा है कि संगटन की मजबूती पर अभी से ही अपने क्षत्र के पंचायत स्तर तक ध्यान दें। बूथ को मजबूत करें।
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