कल तक जिस घर में रहते थे वो एक झटके में खत्म हुआ, मलबे से तिनका-तिनका निकाल रहे ताकि कबाड़ में बेच खाना खरीद सकें h3>
मलबे में से कबाड़ बीन रहे हैं लोग
मलबे के पहाड़ के ऊपर खड़े होकर 40 साल के रतन लाल और उनकी पत्नी विभा देवी अपने टूटे हुए घर के अवशेषों को खंगालने में व्यस्त थे, इस उम्मीद में कि धातु का कोई टुकड़ा मिल जाए जिसे स्क्रैप डीलरों को बेचा जा सके। ये दोनों मजदूरी करके अपनी आजीविका कमाते हैं, लेकिन पिछले तीन दिनों से काम पर नहीं जा पाए हैं क्योंकि 30 अप्रैल को उनके घर को ध्वस्त कर दिया गया था। सोमवार देर शाम तक तुगलकाबाद के चुरियुआ मोहल्ला में जेसीबी का काफिला खड़ा रहा। मंगलवार को इलाके में कबाड़ के कारोबारियों का जमावड़ा लग गया।
सस्ते दामों में कबाड़े बेचने को मजबूर हैं लोग
रतन लाल की पड़ोसी शबनम ने कहा, ‘हमारे घरों को तोड़ा जा रहा है, जिन्हें हमने अपने हाथों से बनाया था। अब यहां से हम खिड़कियों और दरवाजों में लगी लोहे की रोड निकाल रहे हैं, ताकि उन्हें कबाड़ में बेच सकें। इलाके में कई कबाड़ी जमा हो गए हैं, जो केवल 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खरीद रहे हैं। जबकि लोहे की कीमत आमतौर पर 70 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा जाता है। शबनम कहती हैं कि हमारा सबकुछ बर्बाद हो चुका है। ऐसे में कम से कम ये पैसा हमें कुछ दिनों तक पेट भरने में मदद करेगा।
लोगों को नौकरी जाने की सता रही है चिंता
तुगलकाबाद में अतिक्रमण हटाने के बाद कई लोग बेघर हो गए हैं। अब ये लोग शेड लगाकर जीवन गुजार रहे हैं। लोग अपने काम पर भी नहीं जा पा रहे हैं, ऐसे में उन्हें डर है कि कहीं उनकी नौकरी नहीं चली जाए। दूसरी ओर बच्चों भी स्कूल नहीं जा पा रहा हैं, उनके पैरेंट्स को बच्चों के भविष्य की चिंता सता रही है। घरों में काम करने वाली 50 साल की कुलसुम बताती हैं कि उन्हें इस बात की चिंता खाए जा रही है कि उनके काम पर न जाने से कहीं नौकरी न चली जाए। उन्होंने कहा, ‘मेरे बेटे के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई, इसलिए अपने मालिक को यहां के हालात के बारे में नहीं बता पाई। मैं वहां जा भी नहीं सकती क्योंकि मेरे पति नए ठिकाने की तलाश कर रहे हैं, जबकि मैं अपने घर के सामान की रखवाली कर रही हूं, जो खुले में पड़ा हुआ है।’
सरकार से लगा रहे मदद की गुहार
कई परिवारों ने अपने बच्चों को सड़क पर सामान की रखवाली करने के लिए तैनात किया है। लोगों का कहना है कि उन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल रही है। वे फिर से बसने और सहायता की सरकार से गुहार लगा रहे हैं। कुछ लोगों ने यह भी बताया कि उनके घरों को तोड़ा जा रहा है, लेकिन इलाके में अभी भी नई बहुमंजिला इमारतें बन रही हैं।
सड़क पर रहने को मजबूर हैं लोग
उन्होंने कहा कि कई परिवार रात में भूखे सो रहे हैं। एक स्थानीय ने बताया, ‘हमारे पास पीने तक का पानी भी नहीं है। हमारे बच्चे और बुजुर्ग कई दिनों से सड़क पर रह रहे हैं। कोई राजनेता हमारी मदद के लिए आगे नहीं आया है। ये बताते हुए उनकी आंखें भर आईं। कई लोगों ने स्थानीय नेताओं पर साजिश का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की मांग की। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने यहां घरों के लिए 2 से 6 लाख रुपये एडवांस और 10 हजार रुपये से 30 हजार रुपये महीने की किस्तों का भुगतान किया।