कटरा धूलिया: आज जहां कपड़े मिलते हैं, वहीं लॉर्ड हार्डिंग पर फेंका गया था बम h3>
जब कटरा धूलिया से वायसराय पर फेंका गया बम
चांदनी चौक में कटरा धूलिया का इतिहास करीब 150 साल पुराना बताया जाता है। यहां आज भी कई दुकानें 1900 के आसपास की हैं। इंग्लैंड के इतिहास में आज भी इस कटरे का नाम खूनी कटरे के नाम से दर्ज है। आजादी से पहले जब भारत की राजधानी कोलकाता से स्थानांतरित होकर दिल्ली आई। तब 23 दिसंबर 1912 को भारत का वायसराय लॉर्ड हार्डिंग दिल्ली आया। उनके दिल्ली आने पर अंग्रेजी हुकूमत ने जश्न मनाया। हार्डिंग ने चांदनी चौक में हाथी पर बैठकर सवारी की। जब कटरा धूलिया के सामने से कारवां गुजरा, तब पहली मंजिल की खिड़की से उनके ऊपर क्रांतिकारियों ने बम फेंका। हमले में लार्ड हार्डिंग बच गया। मार्शल लॉ लगा दिया गया। देखते ही गोली मारने के आदेश हुए। तीन दिन तक कर्फ्यू रहा। घटना में शामिल क्रांतिकारी मास्टर अमीरचंद, भाई बाल मुकुंद और मास्टर अवध बिहारी को पकड़ लिया गया। 8 मई 1915 को दिल्ली के फांसी घर (शहीद स्मारक स्थल) में उन्हें फांसी दी गई। बसंत कुमार बिश्वास को अगले दिन अंबाला जेल में फांसी दी गई। पुरानी दिल्ली के लोग इस घटना को ‘हार्डिंग बम कांड’ के नाम से भी जानते हैं।
कटरे की समस्याएं
दिनेश जैन ने बताया कि कटरा धूलिया में बरसात के दिनों में पानी भर जाता है। यहां ड्रैनेज सिस्टम ठीक नहीं है। मॉनसूनी सीजन में बारिश होगी, तब फिर से जलजमाव होगा। दुकानों और गोदामों में पानी जाने का डर रहता है। यदि किसी शॉप या गोदाम में पानी चला जाता है, तो माल को भारी नुकसान होता है। कटरा धूलिया में भी बिजली के तारों का जंजाल लगा है। इसे कवर करने की जरूरत है। प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए।
मार्केट का मुख्य द्वार सबसे खास
कटरा धूलिया का मुख्य द्वार सबसे खास है। यह काफी ऊंचा और चौड़ा है। भारी भरकम गेट को आसानी से बंद नहीं किया जा सकता है। पुराने लोग बताते हैं कि यह गेट 1900 से भी पुराना है। ये लकड़ी का बना है। रोजाना रात में गेट को बंद कर दिया जाता है। गेट में छोटा दरवाजा लगा है, जिसमें से झुककर आवाजाही हो सकती है। व्यापारियों का कहना है कि गेट की रंगाई-पुताई समय-समय पर होती है। ये गेट कटरे की जान है।
कमिटी उठाती कई खर्चे
कटरे में साफ-सफाई के लिए कमिटी खुद से प्रबंध करती है। निजी सफाई कर्मचारियों को रखा गया है। इनका खर्चा वहन किया जाता है। साथ ही मार्केट की सुरक्षा के लिए सिक्योरिटी लगाई है। पीने के पानी का खर्चा भी कमिटी उठाती है। मुख्य द्वार पर प्याऊ है, जिसमें एक आदमी की ड्यूटी रहती है। गर्मियों के दौरान दिन में 3 बार बर्फ डाली जाती है। होली से दीपावली तक ठंडा पानी और दीपावली से होली तक नॉर्मल पानी निशुल्क पिलाया जाता है।
आगजनी के बाद उबर नहीं सका बाजार
22 मई 2017 को कटरा धूलिया में भयंकर आग लगी। दिल्ली समेत देशभर में आग की खबर और चर्चा गरम रही। चांदनी चौक के सांसद डॉ. हर्षवर्धन और तत्कालीन विधायक अलका लांबा मौके पर भी पहुंची थीं। दोनों ने बड़े-बड़े आश्वासन दिए। व्यापारियों की हर संभव मदद का वादा किया, लेकिन वो हवा-हवाई निकला। आगजनी की घटना कटरा धूलिया का टर्निंग पॉइंट रहा, तब से बाजार उबर नहीं पाया। दुकानदारों का माल मिट्टी में मिल गया। मार्केट में आज भी 9 दुकानें सील हैं। इनके मालिक ऐसे चक्रव्यूह में फंस गए हैं, जिससे नहीं निकल पा रहे हैं। अधिकतर व्यापारी कानूनी और लीगल विषयों के जानकार नहीं हैं। वो सारी मुसीबत झेल रहे हैं। उनके लिए घर-परिवार को पालना मुश्किल हो गया है। देखिए, व्यापार तो ढोल बजने पर है, ढोल बजता है, तो कारोबार होता है। –दिनेश कुमार जैन, प्रधान, कटरा धूलिया कमिटी
किफायती दामों में बेहतर कपड़ा
कटरा धूलिया कपड़ों में शूटिंग, शर्टिंग, ड्रैस मैटेरियल, लेडिज सूट, सेंचुरी कॉटन के निर्माता कारोबार करते हैं। ये होलसेल में पूरे देश में माल सप्लाई करते हैं। यहां के दिल्ली समेत देशभर के थोक व्यापारी माल खरीदने आते हैं। रिटेल खरीदार कटरा धूलिया में कम ही आते हैं। यहां के सारा बिजनेस होलसेल पर टिका है। चांदनी चौक मेट्रो स्टेशन के गेट के सबसे नजदीक कटरा धूलिया पड़ता है। पुराने व्यापारी आज भी माल खरीकर ले जाते हैं। कटरा धूलिया में डिस्प्ले का अभाव है। ग्राहकों को कपड़ों की वैरायटी, रंग और क्वालिटी नहीं दिखा पाते हैं। इससे रिटेल खरीदार यहां आने से परहेज करता है। हालांकि, जिन लोगों को मार्केट की विशेषता और गुणवत्ता की जानकारी है, वो जरूर आता है। कटरा धूलिया में किफायती दामों में बेहतर कपड़ा मिल जाता है। -राजनारायण सर्राफ, मंत्री, कटरा धूलिया कमिटी
यहां आज भी सभी दुकानदार किरायेदार
कटरा धूलिया सेठ सूरजमल बाबूलाल धार्मिक धर्माता ट्रस्ट की प्रॉपर्टी है। इन्होंने 1936 में महाराष्ट्र के धूलिया में रहने वाले सेठ मीनामल से प्रॉपर्टी खरीदी थी। तब से कटरे का नाम धूलिया पड़ गया। अभी यहां सभी दुकानदार किरायेदार हैं। महामारी कोविड-19 से पहले किराये के भुगतान में ट्रस्ट की रसीद आती थी। नोटबंदी, जीएसटी, 2017 की आग और फिर कोरोना ने व्यापारियों को तोड़ दिया है। यहां के दुकान बहुत कम कीमतों पर कपड़ों का बिजनेस करते हैं। कहा जाता है कि मुगलों के समय यहां अस्तबल होता था। यहां के व्यापारी अहमदाबाद, भीलवाड़ा, सूरत और मुंबई की मिल से माल लाते है। यहां से उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, एनसीआर के बाजारों में कपड़ा भेजा जाता है। कुछ व्यापारियों का उत्तराखंड और बिहार तक भी कपड़ा जाता है।- दिनेश जैन, कोषाध्यक्ष, कटरा धूलिया कमिटी
मेट्रो स्टेशन नजदीक होने पर भी फुटफॉल कम
कटरा धूलिया का बाजार चांदनी चौक से कम है। यहां कोई नया ग्राहक नहीं आता है। पुराने कस्टमर ही घूम रहे हैं। मेट्रो स्टेशन के सबसे करीब होने के बावजूद फुटफॉल कम रहता है। जबकि, चांदनी चौक का अधिकतर कारोबार मेट्रो से चल रहा है। आग की घटना के बाद मार्केट बैठ गया है। यहां कोई आने को राजी नहीं। दिल्ली और केंद्र सरकार की ओर से किसी तरह की सहायता नहीं मिली। एमसीडी ने दुकानों को सील किया गया। आरोप लगा कि अनधिकृत तौर पर दुकानें बनाई गई। जबकि ये दुकानें 100 साल से ज्यादा पुरानी हैं। यदि कोई रिपेयर करके दुकानें बना रहा हैं, तो क्या दिक्कत है? आग लगाने के बाद सांसद, मेयर, स्टैंडिंग कमिटी के चेयरमैन आए थे। सभी ने कहा था कि किसी को परेशानी नहीं आएगी। इसके बाद भी व्यापारियों की टेंशन बढ़ाई। – सुशील कुमार बंसल, कार्यकारिणी सदस्य