एन. रघुरामन का कॉलम: सिक्के की तरह जीवन में भी दो पहलू हैं, आप क्या चुनते हैं h3>
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
शुक्रवार, 9 मई की शाम को मैं काम के सिलसिले में उज्जैन जा रहा था। संयोग से उस दिन प्रदोष व्रत था, जो कि हर महीने दोनों पक्षों (शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष) की त्रयोदशी को पड़ता है। यह उन महत्वपूर्ण हिंदू व्रतों में से है, जिसे मेरी मां बहुत श्रद्धा से करती थीं और इस दिन मंदिर जाना कभी नहीं भूलतीं थी।
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मैं भले काम से देर से लौटूं, लेकिन वह मंदिर जाने के लिए जरूर कहती थीं, कम से प्रदोष के दिन जाना तो अनिवार्य था। उन दिनों को याद करते हुए मैंने उज्जैन में अपने सहयोगी राजेश पांचाल को फोन किया और उनसे महाकाल के दर्शन कराने का अनुरोध किया और उन्होंने कहा कि ‘बाहर हल्की बारिश हो रही है, ऐसे में आज से बेहतर दिन क्या हो सकता है।’
उन्होंने महाकवि कालिदास की रचनाओं का जिक्र किया, जिनकी कर्मभूमि उज्जैन थी। कालिदास ने कभी कहा था, “मेघ, तुम अगर जल्दी पहुंच जाओ तो महाकाल की संध्या आरती में गरजना। उस समय जो ढोल बजाए जाते हैं, उसका श्रेय तुम्हें मिलेगा।’ पंचांग मेंं प्रदोष की तिथि और बाहर का सुहावना मौसम…जब मैंने इस सुखद संयोग और संबंध के बारे में सुना तो मैंने कहा, ‘वाह, काश मैं शाम की आरती में शामिल हो पाता और भगवान की स्तुति करके उनका आशीर्वाद ग्रहण कर पाता।’
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उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘मैं आपकी प्रार्थना बाबा महाकाल तक पहुंचा दूंगा क्योंकि वही तय करते हैं कि उनके धाम में कौन-सा भक्त, कब उनसे मिल सकता है, वह भी ऐसे शुभ अवसरों पर।’ इस विनम्रता ने युवा पीढ़ी के प्रति मेरे मन में एक नई श्रद्धा उत्पन्न की, खासकर उस दुनिया में जहां लोग उन चीजों का श्रेय भी ले लेते हैं जो उन्होंने नहीं की होतीं।
चूंकि मेरी कार शहर के एक मुख्य चौराहे पर, बत्ती हरी होने का इंतजार कर रही थी, उन्होंने मुझसे पहले से तय एक जगह पर मिलने के लिए कहा। वहां मैंने देखा कि एक बुजुर्ग दंपति, ‘पैदल सिग्नल’ हरा होने पर सड़क पार करने के लिए आगे बढ़े। वह शायद मंदिर की ओर जा रहे थे और धोती पहनने के कारण उन बुजुर्ग को चलने में शायद थोड़ी दिक्कत हो रही थी।
तभी अचानक एक ड्राइवर, जिसे लगा कि उसका बायां मोड़ हमेशा की तरह खाली होगा, वह गाड़ी मोड़ता हुआ उनके रास्ते में आ गया। ‘अरे!’ वे बुजुर्ग दंपति चिल्लाते हुए पीछे हट गए। ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगाए, खिड़की का शीशा नीचे किया और कंधों व कानों के बीच में मोबाइल फंसाए हुए कहा, ‘गलती हो जाती है’ और फोन पर बात करने लगा।
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इस पर वह बुजुर्ग गरजते हुए बोले, ‘गलतियां हो जाती हैं? तुम तो हमें सीधा महाकाल के पास पहुंचा चुके होते।’ विभूति के लेप से माथे के बीचों-बीच बनी तीन रेखाएं और बीच में कुमकुम का टीका लगाए बुजुर्ग का माथा इसे आवेश में सिकुड़कर आधा रह गया। ड्राइवर बुदबुदाया, ‘काश मैं कर पाता!’ और तेजी से चला गया।
मैंने रुककर उन बुजुर्ग दंपति को लिफ्ट देने का फैसला किया। पर उन्होंने विनम्रता से इंकार कर दिया और कहा, ‘जो होता है, अच्छे के लिए होता है।’ दंपति ने भगवान से मन्नत मांगी थी कि उनका नौजवान बेटा ठीक हो जाए, और वे नंगे पैर चलकर बाबा महाकाल की चौखट पर आएंगे। मैंने उन्हें शुभकामनाएं दीं और वहां से चला गया।
अपना काम निपटाने के ढाई घंटे बाद मैं राजेश से मिला और मंदिर पहुंचा और पाया कि वही बुजुर्ग दंपति मंदिर में आरती के समय मेरे बगल में बैठे थे और उस गलती करने वाले ड्राइवर को आशीर्वाद दे रहे थे। उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा, ‘चूंकि उसके कारण हमें देर हो गई और हम इस आरती में शामिल हो सके, नहीं तो हम चूक जाते। इसलिए मैंने उस ड्राइवर के लिए भी प्रार्थना की।’
फंडा यह है कि हमारे सृजनकर्ता हमारे जीवन में विकल्प रूपी सिक्के फेंकते हैं और हमें वह चुनने के लिए प्रेरित करते हैं, जो हमें खुशी दे। अच्छे लोग उस क्षण में जीने का चुनाव करते हैं, बजाय इसके लिए अतीत के बारे में सोचते रहें या अनिश्चित भविष्य की खोज में रहें, जैसा कि वह तेज गति से चलने वाला ड्राइवर कर रहा था।
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शुक्रवार, 9 मई की शाम को मैं काम के सिलसिले में उज्जैन जा रहा था। संयोग से उस दिन प्रदोष व्रत था, जो कि हर महीने दोनों पक्षों (शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष) की त्रयोदशी को पड़ता है। यह उन महत्वपूर्ण हिंदू व्रतों में से है, जिसे मेरी मां बहुत श्रद्धा से करती थीं और इस दिन मंदिर जाना कभी नहीं भूलतीं थी।
मैं भले काम से देर से लौटूं, लेकिन वह मंदिर जाने के लिए जरूर कहती थीं, कम से प्रदोष के दिन जाना तो अनिवार्य था। उन दिनों को याद करते हुए मैंने उज्जैन में अपने सहयोगी राजेश पांचाल को फोन किया और उनसे महाकाल के दर्शन कराने का अनुरोध किया और उन्होंने कहा कि ‘बाहर हल्की बारिश हो रही है, ऐसे में आज से बेहतर दिन क्या हो सकता है।’
उन्होंने महाकवि कालिदास की रचनाओं का जिक्र किया, जिनकी कर्मभूमि उज्जैन थी। कालिदास ने कभी कहा था, “मेघ, तुम अगर जल्दी पहुंच जाओ तो महाकाल की संध्या आरती में गरजना। उस समय जो ढोल बजाए जाते हैं, उसका श्रेय तुम्हें मिलेगा।’ पंचांग मेंं प्रदोष की तिथि और बाहर का सुहावना मौसम…जब मैंने इस सुखद संयोग और संबंध के बारे में सुना तो मैंने कहा, ‘वाह, काश मैं शाम की आरती में शामिल हो पाता और भगवान की स्तुति करके उनका आशीर्वाद ग्रहण कर पाता।’
उन्होंने विनम्रता से कहा, ‘मैं आपकी प्रार्थना बाबा महाकाल तक पहुंचा दूंगा क्योंकि वही तय करते हैं कि उनके धाम में कौन-सा भक्त, कब उनसे मिल सकता है, वह भी ऐसे शुभ अवसरों पर।’ इस विनम्रता ने युवा पीढ़ी के प्रति मेरे मन में एक नई श्रद्धा उत्पन्न की, खासकर उस दुनिया में जहां लोग उन चीजों का श्रेय भी ले लेते हैं जो उन्होंने नहीं की होतीं।
चूंकि मेरी कार शहर के एक मुख्य चौराहे पर, बत्ती हरी होने का इंतजार कर रही थी, उन्होंने मुझसे पहले से तय एक जगह पर मिलने के लिए कहा। वहां मैंने देखा कि एक बुजुर्ग दंपति, ‘पैदल सिग्नल’ हरा होने पर सड़क पार करने के लिए आगे बढ़े। वह शायद मंदिर की ओर जा रहे थे और धोती पहनने के कारण उन बुजुर्ग को चलने में शायद थोड़ी दिक्कत हो रही थी।
तभी अचानक एक ड्राइवर, जिसे लगा कि उसका बायां मोड़ हमेशा की तरह खाली होगा, वह गाड़ी मोड़ता हुआ उनके रास्ते में आ गया। ‘अरे!’ वे बुजुर्ग दंपति चिल्लाते हुए पीछे हट गए। ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगाए, खिड़की का शीशा नीचे किया और कंधों व कानों के बीच में मोबाइल फंसाए हुए कहा, ‘गलती हो जाती है’ और फोन पर बात करने लगा।
इस पर वह बुजुर्ग गरजते हुए बोले, ‘गलतियां हो जाती हैं? तुम तो हमें सीधा महाकाल के पास पहुंचा चुके होते।’ विभूति के लेप से माथे के बीचों-बीच बनी तीन रेखाएं और बीच में कुमकुम का टीका लगाए बुजुर्ग का माथा इसे आवेश में सिकुड़कर आधा रह गया। ड्राइवर बुदबुदाया, ‘काश मैं कर पाता!’ और तेजी से चला गया।
मैंने रुककर उन बुजुर्ग दंपति को लिफ्ट देने का फैसला किया। पर उन्होंने विनम्रता से इंकार कर दिया और कहा, ‘जो होता है, अच्छे के लिए होता है।’ दंपति ने भगवान से मन्नत मांगी थी कि उनका नौजवान बेटा ठीक हो जाए, और वे नंगे पैर चलकर बाबा महाकाल की चौखट पर आएंगे। मैंने उन्हें शुभकामनाएं दीं और वहां से चला गया।
अपना काम निपटाने के ढाई घंटे बाद मैं राजेश से मिला और मंदिर पहुंचा और पाया कि वही बुजुर्ग दंपति मंदिर में आरती के समय मेरे बगल में बैठे थे और उस गलती करने वाले ड्राइवर को आशीर्वाद दे रहे थे। उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा, ‘चूंकि उसके कारण हमें देर हो गई और हम इस आरती में शामिल हो सके, नहीं तो हम चूक जाते। इसलिए मैंने उस ड्राइवर के लिए भी प्रार्थना की।’
फंडा यह है कि हमारे सृजनकर्ता हमारे जीवन में विकल्प रूपी सिक्के फेंकते हैं और हमें वह चुनने के लिए प्रेरित करते हैं, जो हमें खुशी दे। अच्छे लोग उस क्षण में जीने का चुनाव करते हैं, बजाय इसके लिए अतीत के बारे में सोचते रहें या अनिश्चित भविष्य की खोज में रहें, जैसा कि वह तेज गति से चलने वाला ड्राइवर कर रहा था।
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