एन. रघुरामन का कॉलम: बीज पर काम करें, तो फल अपने आप आपको चौंका देंगे h3>
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
नारायणा हेल्थ के चेयरमैन व कार्यकारी निदेशक डॉ. देवी प्रसाद शेट्टी ने काफी पहले एक कार्यक्रम में कहा था कि भारत पहला ऐसा देश बनने को तैयार है, जहां स्वास्थ्य देखभाल व पैसा अलग-अलग होगा और ये बदलाव अगले 5 से 10 वर्षों में ही हो जाएगा। इस दावे के समर्थन में डॉ. शेट्टी ने तीन बड़ी अर्थव्यवस्था-भारत, अमेरिका व चीन में मोतियाबिंद सर्जरी की तुलना की।
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उन्होंने कहा, ‘अमेरिका में सालाना 35 लाख मोतियाबिंद सर्जरी होती हैं। आबादी के लिहाज से चीन को इसकी पांच गुना सर्जरी करनी चाहिए, पर वह सिर्फ 32 लाख ही करता है। जबकि भारत में 85 लाख सर्जरी सालाना होती हैं, जो अमेरिका, चीन और बहुत से यूरोपीय देशों को मिलाकर भी अधिक है।
शेट्टी के अनुसार ये उन उद्यमी चिकित्सकों के कारण संभव हुआ, जिन्होंने स्वतंत्र क्लिीनिक खोले। इससे सर्जरी का खर्च घटा। उन्होंने गर्व से कहा ‘भारत अपने स्वास्थ्य देखभाल के ढांचे में बदलाव कर रहा है। जो हमने हासिल किया, वो कोई और देश नहीं कर सकता।’
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डॉ. शेट्टी ने पहले के एक इंटरव्यू में कहा था, ‘निजी क्षेत्र में बहुत महंगी होती जा रही चिकित्सा शिक्षा के कारण हम आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों में से बहुत से जादुई हाथ खोते जा रहे हैं।’ उनका मतलब था कि भविष्य के ऐसे बहुत से प्रतिभावान डॉक्टर हैं, जो मेडिसिन में योगदान दे सकते हैं, पर महंगी पढ़ाई के कारण वे अवसर खो रहे हैं।
डॉ. शेट्टी के वो दोनों कथन मुझे तब याद आए, जब मैंने हाल ही में सुना कि कैसे उत्तरप्रदेश के सर्वोदय स्कूल की 25 में से 12 छात्राओं ने नीट परीक्षा पास की है, जिसका परिणाम इसी सप्ताह जारी हुआ है। यहां उन छात्राओं की कहानी बताता हूं।
प्रिंसी खेतिहर मजदूर की बेटी हैं, पूजा रंजन सोनभ्रद के किसान की बेटी हैं, वहीं कौशांबी की श्वेता, साइकिल का सीट कवर बेचने वाले परिवार में पली-बढ़ीं। उनका सपना सरकारी स्कूल से अधिक कुछ भी नहीं था और वे हॉस्पिटल बेड्स के बीच इधर-उधर भागती महिला डॉक्टर्स को दूर से देखकर सिर्फ अचरज करती थीं।
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एप्रन पहनकर गले में स्टेथोस्कोप लटकाए देखने की कल्पना मात्र से ही वह डर जाती थीं। पर अब ऐसा नहीं है। अपने स्कूल की नौ अन्य छात्राओं समेत इन तीनों ने इस वर्ष नीट परीक्षा पास कर ली है। यूपी के मिर्जापुर स्थित मरिहन में समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित सर्वोदय विद्यालय की 25 छात्राएं इस परीक्षा में शामिल हुई थीं, इनमें सभी अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग से थीं और इनमें से आधी छात्राओं ने ये परीक्षा पास कर बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
उन्होंने ये सब कैसे किया? आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग के छठी से बारहवीं के बच्चों के लिए हॉस्टल सुविधा के साथ संचालित होने वाले सर्वोदय स्कूल में छात्राओं को मुफ्त आवासीय कोचिंग मिली। नियमित स्कूल के अलावा ये छात्राएं खासतौर पर नीट के लिए कोचिंग में भी शामिल होती थीं।
वहां नीट-जेईई के लिए दाखिला लेने वाली 39 छात्राओं में से 25 ने परीक्षा दी और 12 उतीर्ण हुईं। इस सफलता से प्रेरित होकर समाज कल्याण विभाग के ‘सेंटर फॉर एक्सीलेंस’ को पूरे यूपी के अन्य सर्वोदय विद्यालयों में भी शुरू किया जा रहा है, यूपी में ऐसे स्कूलों की संख्या लगभग 100 है।
मैं जयपुर के शेपिंग फ्यूचर नाम के एक संगठन के बारे में जानता हूं, जो आर्थिक तौर पर कमजोर ऐसे सैकड़ों बच्चों की सहायता करता है, बशर्ते वो बच्चे मेधावी हों और भविष्य के भारत की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने की योग्यता रखते हों।
इन युवा मेधावी दिमागों को जो चाहिए, वह है सीखने की तकनीक में जरा सा प्रोत्साहन और थोड़ी सी वित्तीय सहायता। और फिर, जैसा कि डॉ.शेट्टी ने कहा, भारत को विभिन्न क्षेत्रों में दुनिया के किसी भी देश को मात देने से कोई नहीं रोक सकता। यहां तक कि हम जैसे लोग भी अपने आसपास ऐसे प्रतिभाशाली दिमागों को पहचान सकते हैं।
फंडा यह है कि यदि हम बीजों पर काम करें, मेरा मतलब कि आर्थिक रूप से सबसे निचले पायदान पर बैठे गरीब बच्चों पर, तो उनमें से उपजाऊ बीज रूपी बच्चे प्रकाश की ओर बढ़ेंगे और संबंधित क्षेत्र में मिसाल कायम करेंगे।
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नारायणा हेल्थ के चेयरमैन व कार्यकारी निदेशक डॉ. देवी प्रसाद शेट्टी ने काफी पहले एक कार्यक्रम में कहा था कि भारत पहला ऐसा देश बनने को तैयार है, जहां स्वास्थ्य देखभाल व पैसा अलग-अलग होगा और ये बदलाव अगले 5 से 10 वर्षों में ही हो जाएगा। इस दावे के समर्थन में डॉ. शेट्टी ने तीन बड़ी अर्थव्यवस्था-भारत, अमेरिका व चीन में मोतियाबिंद सर्जरी की तुलना की।
उन्होंने कहा, ‘अमेरिका में सालाना 35 लाख मोतियाबिंद सर्जरी होती हैं। आबादी के लिहाज से चीन को इसकी पांच गुना सर्जरी करनी चाहिए, पर वह सिर्फ 32 लाख ही करता है। जबकि भारत में 85 लाख सर्जरी सालाना होती हैं, जो अमेरिका, चीन और बहुत से यूरोपीय देशों को मिलाकर भी अधिक है।
शेट्टी के अनुसार ये उन उद्यमी चिकित्सकों के कारण संभव हुआ, जिन्होंने स्वतंत्र क्लिीनिक खोले। इससे सर्जरी का खर्च घटा। उन्होंने गर्व से कहा ‘भारत अपने स्वास्थ्य देखभाल के ढांचे में बदलाव कर रहा है। जो हमने हासिल किया, वो कोई और देश नहीं कर सकता।’
डॉ. शेट्टी ने पहले के एक इंटरव्यू में कहा था, ‘निजी क्षेत्र में बहुत महंगी होती जा रही चिकित्सा शिक्षा के कारण हम आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों में से बहुत से जादुई हाथ खोते जा रहे हैं।’ उनका मतलब था कि भविष्य के ऐसे बहुत से प्रतिभावान डॉक्टर हैं, जो मेडिसिन में योगदान दे सकते हैं, पर महंगी पढ़ाई के कारण वे अवसर खो रहे हैं।
डॉ. शेट्टी के वो दोनों कथन मुझे तब याद आए, जब मैंने हाल ही में सुना कि कैसे उत्तरप्रदेश के सर्वोदय स्कूल की 25 में से 12 छात्राओं ने नीट परीक्षा पास की है, जिसका परिणाम इसी सप्ताह जारी हुआ है। यहां उन छात्राओं की कहानी बताता हूं।
प्रिंसी खेतिहर मजदूर की बेटी हैं, पूजा रंजन सोनभ्रद के किसान की बेटी हैं, वहीं कौशांबी की श्वेता, साइकिल का सीट कवर बेचने वाले परिवार में पली-बढ़ीं। उनका सपना सरकारी स्कूल से अधिक कुछ भी नहीं था और वे हॉस्पिटल बेड्स के बीच इधर-उधर भागती महिला डॉक्टर्स को दूर से देखकर सिर्फ अचरज करती थीं।
एप्रन पहनकर गले में स्टेथोस्कोप लटकाए देखने की कल्पना मात्र से ही वह डर जाती थीं। पर अब ऐसा नहीं है। अपने स्कूल की नौ अन्य छात्राओं समेत इन तीनों ने इस वर्ष नीट परीक्षा पास कर ली है। यूपी के मिर्जापुर स्थित मरिहन में समाज कल्याण विभाग द्वारा संचालित सर्वोदय विद्यालय की 25 छात्राएं इस परीक्षा में शामिल हुई थीं, इनमें सभी अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़ा वर्ग से थीं और इनमें से आधी छात्राओं ने ये परीक्षा पास कर बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
उन्होंने ये सब कैसे किया? आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग के छठी से बारहवीं के बच्चों के लिए हॉस्टल सुविधा के साथ संचालित होने वाले सर्वोदय स्कूल में छात्राओं को मुफ्त आवासीय कोचिंग मिली। नियमित स्कूल के अलावा ये छात्राएं खासतौर पर नीट के लिए कोचिंग में भी शामिल होती थीं।
वहां नीट-जेईई के लिए दाखिला लेने वाली 39 छात्राओं में से 25 ने परीक्षा दी और 12 उतीर्ण हुईं। इस सफलता से प्रेरित होकर समाज कल्याण विभाग के ‘सेंटर फॉर एक्सीलेंस’ को पूरे यूपी के अन्य सर्वोदय विद्यालयों में भी शुरू किया जा रहा है, यूपी में ऐसे स्कूलों की संख्या लगभग 100 है।
मैं जयपुर के शेपिंग फ्यूचर नाम के एक संगठन के बारे में जानता हूं, जो आर्थिक तौर पर कमजोर ऐसे सैकड़ों बच्चों की सहायता करता है, बशर्ते वो बच्चे मेधावी हों और भविष्य के भारत की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेने की योग्यता रखते हों।
इन युवा मेधावी दिमागों को जो चाहिए, वह है सीखने की तकनीक में जरा सा प्रोत्साहन और थोड़ी सी वित्तीय सहायता। और फिर, जैसा कि डॉ.शेट्टी ने कहा, भारत को विभिन्न क्षेत्रों में दुनिया के किसी भी देश को मात देने से कोई नहीं रोक सकता। यहां तक कि हम जैसे लोग भी अपने आसपास ऐसे प्रतिभाशाली दिमागों को पहचान सकते हैं।
फंडा यह है कि यदि हम बीजों पर काम करें, मेरा मतलब कि आर्थिक रूप से सबसे निचले पायदान पर बैठे गरीब बच्चों पर, तो उनमें से उपजाऊ बीज रूपी बच्चे प्रकाश की ओर बढ़ेंगे और संबंधित क्षेत्र में मिसाल कायम करेंगे।
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