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एन. रघुरामन का कॉलम: देश की सांस्कृतिक ‘टेपेस्ट्री’ समझकर अच्छे सेल्सपर्सन बन सकते हैं

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एन. रघुरामन का कॉलम:  देश की सांस्कृतिक ‘टेपेस्ट्री’ समझकर अच्छे सेल्सपर्सन बन सकते हैं

एन. रघुरामन का कॉलम: देश की सांस्कृतिक ‘टेपेस्ट्री’ समझकर अच्छे सेल्सपर्सन बन सकते हैं

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2 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

12 अप्रैल को जहां देश के अधिकांश हिस्सों में हनुमान जयंती मनाई गई, वहीं देश के विभिन्न प्रांतों में फैले हुए विविध समुदाय अपनी कला और विविधता से भरे खानपान का प्रदर्शन करते हुए विभिन्न तरीकों से 20 अप्रैल तक बैसाखी, पोइला बोइशाख, पुथांडु, विशु और बिहू मनाएंगे, जिसे मैं अपनी खूबसूरत सांस्कृतिक ‘टेपेस्ट्री’ कहता हूं।

टेपेस्ट्री क्या है? ये एक प्रकार की वस्त्र कला है, जिसे पारंपरिक रूप से करघे पर हाथ से बुना जाता है। सामान्यतः इसका उपयोग चित्र बनाने में होता है, न कि पैटर्न के लिए। सदियों पहले, यह दो आयामों में चित्रात्मक छवियों के लिए सबसे महंगा माध्यम था।

पेंटिंग के महत्व में तेजी से वृद्धि के बावजूद, टेपेस्ट्री ने 16वीं शताब्दी के अंत तक कई पुनर्जागरण संरक्षकों की नजर में अपनी स्थिति बनाए रखी। तब से कलात्मक शैलियों में व्यापक परिवर्तन हुए, लेकिन हमारी सांस्कृतिक टेपेस्ट्री (जिसे परंपराएं भी कहा जाता है) माता-पिता से बच्चों को सौंपी जाती रही और इस प्रकार यह आज तक सुरक्षित रही है, और निश्चित रूप से भविष्य में भी।

मुझे बाकियों का नहीं पता, लेकिन स्कूल नहीं गए सेल्समैन कई बार हमसे ज्यादा जानते हैं। मुंबई की सड़कों पर बोरिवली से चर्चगेट या ठाणे से सीएसटी तक यात्रा करें, हर सिग्नल पर 9-14 वर्ष के युवा लड़के जो सामान बेचते हैं, वह अगले दिन के हमारे त्योहारों से जुड़ा होता है। लाल और हरे सिग्नल के बीच आने वाली 30 से 180 सेकंड की विंडो में ये युवा लड़के-लड़कियां आसानी से इन सांस्कृतिक ‘टेपेस्ट्री’ को पेश करते हैं।

वे इनमें से किसी का भी जश्न नहीं मनाते, लेकिन वे इसके बारे में सब कुछ जानते हैं। मैं चेंबूर (जहां कई दक्षिण भारतीय रहते हैं) के पास एक सिग्नल पर एक ऐसे ही युवा सेल्समैन से मिला, जो ‘कोलम’ (रंगोली) बनाने के विभिन्न टूल्स बेच रहा था।

अपनी पूरी बिक्री पिच में उसने एक बार भी यह नहीं कहा कि यह रंगोली के लिए एक टूल है। उसने ‘कोलम’ का उल्लेख कम से कम दस बार किया। इससे कई लोग खिंचे चले आए और बिहार के इस युवा लड़के से सामान खरीद लिया।

भारत को अक्सर विविधता की भूमि और संस्कृतियों, परंपराओं, भाषाओं, धर्मों के संगम के रूप में जाना जाता है। हजारों वर्षों के समृद्ध इतिहास के साथ, हम भारतीयों के पास रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, कलाओं और व्यंजनों का एक रंगीन मिश्रण है, जो देश की बहुसांस्कृतिक धरोहर और जीवंत पहचान को दर्शाता है। और इन्हें साल दर साल मनाना कई लोगों को प्रेरित करता है और इस प्रकार वे उन सेल्समैन से सामान खरीदने के लिए तैयार होते हैं जो उनकी संस्कृति को समझते हैं, भले ही वह उनके समुदाय का न हो।

यही टेपेस्ट्री की खूबसूरती है! यदि आप इन अप्रशिक्षित सेल्समैन को देखें, तो वे जानते हैं कि बिक्री के समय को कैसे कंट्रोल करना है। जब वह किसी ऑटोरिक्शा में बैठे बंगाली को सुनते हैं, तो उनके त्योहार के बारे में बात करते हैं और अगर किसी पंजाबी को देखते हैं, तो तुरंत दिमाग को स्विच करते हुए बैसाखी के बारे में बात करने लगते हैं। 30-180 सेकंड का सिग्नल टाइम सुनने के लिए एक प्रीमियम जगह है, न कि बात करने के लिए। वह बेफिजूल बातों पर कान देने के बजाय सिर्फ अपने काम की सौ फीसदी बातें सुनकर सेल्स की भनक ले लेते हैं।

इन स्कूल नहीं गए बच्चों से मैंने एक शानदार एमबीए लेसन सीखा। वे सचमुच एक डील के ‘लाइफ स्पैन’ को जानते हैं। दिन के दौरान वे जो अधिकांश सौदे करते हैं, उनमें एक छुपी स्क्रिप्ट होती है, जो कई संस्कृतियों के साथ लिपटी होती है, जिसे वे सिग्नल में बचे सेकंड के आधार पर छोटा या बढ़ा देते हैं। और ये लड़के कभी यह महसूस नहीं कराते कि बिक्री एक घुसपैठ है। उस कम समय में वे आपको हामी में सिर हिलाने के लिए मजबूर कर देते हैं, जिसके लिए आप कुछ सेकंड पहले तैयार नहीं थे।

फंडा यह है कि यदि आप एक अच्छा सेल्समैन बनना चाहते हैं, तो आपको अपनी शिक्षा के अलावा हमारी समृद्ध सांस्कृतिक ‘टेपेस्ट्री’ से भी अवगत होना चाहिए।

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