एन. रघुरामन का कॉलम: जब दरवाजे बंद हों तो लक्ष्य हासिल करने के लिए खिड़की तलाशें

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एन. रघुरामन का कॉलम:  जब दरवाजे बंद हों तो लक्ष्य हासिल करने के लिए खिड़की तलाशें
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एन. रघुरामन का कॉलम: जब दरवाजे बंद हों तो लक्ष्य हासिल करने के लिए खिड़की तलाशें

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10 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

‘कहां है तू’, दूसरी तरफ से आ रही आवाज़ में घबराहट थी। इस तरफ मौजूद बीकॉम प्रथम वर्ष के छात्र, समर्थ महांगडे ने शांति से पूछा, ‘क्या हुआ?’ समर्थ पंचगनी की एक दुकान में, पर्यटकों को गन्ने का ताजा रस दे रहा था। दूसरी तरफ से आवाज और तेज हो गई, ‘अबे एग्जाम है, पागल हो गया है क्या।’ उसमें जूस के गिलास बेंच पर रखे और पंचगनी (महाराष्ट्र) के पास के गांव में स्थित दुकान से दौड़कर निकल पड़ा।

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चगनी, महाबलेश्वर के ट्विन हिल स्टेशन में से एक है, जो स्ट्रॉबेरी के लिए जाना जाता है। दौड़ते हुए समर्थ ने सोचा कि 15 किमी दूर, तलहटी में स्थित पसार्नी गांव के परीक्षा केंद्र तक कैसे पहुंचेगा। उसके दिमाग ने चेताया कि सड़क मार्ग से 30 मिनट लगेंगे और उसके पास उतना समय नहीं है।

समर्थ जल्दी से गोविंद येवले के पास गया, जो उस इलाके में पैराग्लाइडिंग सेशन आयोजित करते हैं। समर्थ ने उनसे विनती की कि उसे पैराग्लाइडर इस्तेमाल करने दें। अगले ही पल वह पैराग्लाइडर में बंधा था, जिसे परीक्षा केंद्र के मैदान में उतारा गया। उसे बस पांच मिनट की देर हुई।

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दरअसल, यूनिवर्सिटी ने पहले सेमेस्टर की परीक्षाएं कैंसल कर दी थीं और समर्थ को बदली हुई तारीखें नहीं पता चल पाईं क्योंकि उसे अपडेटेड हॉल टिकट नहीं मिला था। उसे दोस्त ने इसके बारे में बताया, जब वह पंचगनी के मशहूर हैरिसंस फॉली पॉइंट के जूस सेंटर पर काम कर रहा था। 15 दिसंबर 2024 की इस घटना का वीडियो अब वायरल है।

मुझे यह तब याद आया, जब मुझे बिहार के बक्सर जिले के कम्हरिया गांव के सात लोगों के बारे में पता चला, जिन्होंने महाकुंभ पहुंचने के लिए गैर-पारंपरिक तरीका अपनाया। जब करोड़ों लोग प्रयागराज की ओर जाने वाली सड़कों के जाम में फंसे थे और हजारों लोग हवाई यात्रा की भारी कीमत चुकाकर पहुंच रहे थे, इन सात लोगों ने गंगा पर मोटरबोट से सफर किया।

ये बक्सर से प्रयागराज, 275 किमी नदी के जरिए पहुंचे। उन्होंने 11 फरवरी को सफर शुरू किया, 13 फरवरी को प्रयागराज पहुंचे और फिर 15 फरवरी को गांव लौट आए। उन्हें कोई ट्रैफिक जाम नहीं मिला क्योंकि वे पानी के रास्ते गए!

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चूंकि ट्रैफिक बहुत ज्यादा है और गाड़ियों को संगम से बहुत पहले रोक दिया जा रहा है, इसलिए इन लोगों ने उस ‘गाड़ी’ का इस्तेमाल करने का सोचा, जिससे उनकी रोजी-रोटी चलती है। सात लोगों की टीम में सबसे युवा था 22 वर्षीय मनु चौधरी। 550 किमी और 84 घंटे की राउंड ट्रिप पर सुमंत, संदीप, मनु, सुखदेव, आदू, रविंद्र और रमेश गए, जो पेशेवर नाविक हैं।

नाव में खाना पकाने की सुविधा थी। टीम ने शिफ्ट में काम किया, जिसमें दो लोग नाव चलाते थे और पांच आराम करते थे। नेविगेशन के लिए उन्होंने गूगल मैप का इस्तेमाल किया। यह ऐप्लिकेशन उनके लिए रात को बहुत काम की साबित हुई, जिसमें उन्होंने नदी के मोड़ देखे और अंधेरे में भी सही रास्ते पर बने रहे।

उन्होंने नाव में एक अतिरिक्त इंजन रखा, ताकि एक इंजन फेल होने पर दूसरे से नाव चला सकें। उनके पास नाव में पांच किग्रा का गैस सिलेंडर, 20 लीटर पेट्रोल, सब्जियां, चावल, आटा और कंबल तथा गद्दे थे। वे सिर्फ मोबाइल का पॉवर बैंक ले जाना भूल गए थे! हालांकि उनमें से एक ने कुछ रील बनाईं और इंस्टाग्राम पर उसके सब्सक्राइबर दोगुने हो गए।

फंडा यह है कि जब जीवन में किसी कारण से दरवाज़े बंद हो जाएं तो भी एकाग्रचित बने रहें। हो सकता है आपको लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कोई खिड़की या दूसरा रास्ता नज़र आ जाए!

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