एन. रघुरामन का कॉलम: कई जगहों पर परफेक्शन परफॉर्मेंस का सबसे बड़ा शत्रु है h3>
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
हममें से कई लोगों ने 31 दिसंबर 2024 से पहले बेस्ट ब्रांडेड शोरूम से न सिर्फ बेस्ट जूते, बल्कि कम वजन वाली पानी की बोतल, बाल मैनेज करने के लिए माथे पर बांधने वाला बैंड और मोबाइल फोन रखने वाला भी कोई हैंड बैंड लिया होगा।
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ऐसा इसलिए क्योंकि इस साल हममें से ज्यादातर लोग स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहते हैं और मॉर्निंग वॉक या जॉगिंग शुरू करना चाहते हैं। लेकिन नए साल में 42 दिन गुजरने के बाद अब नगर निगम के या प्राइवेट पार्क में इनकी संख्या सिमट गई है क्योंकि प्राथमिकताएं बदल गई हैं, कॉर्पोरेट यात्राएं आ गई हैं, देर रात तक दफ्तर में रुकना पड़ रहा है और भी कई कारणों में खराब मौसम भी एक वजह है।
और ये परफेक्ट एक्सेसरीज किसी कोने में पड़ी हुई हैं और उन्हें देखकर हम सबको थोड़ी ग्लानि भी होती है। लेकिन अगर आप ऐसे किसी को जानते हैं, जिनके जूते शेल्फ से नीचे उतरने के लिए मदद मांग रहे हैं तो उनके साथ सोनिया की कहानी जरूर साझा करिए। यह शायद उन्हें प्रेरित कर सके।
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उत्तराखंड की 23 वर्षीय सोनिया, जो अपने पहले नाम से ही जानी जाती हैं, उन्होंने वहां चल रहे 38वें नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया। कुछ प्रतिभागियों को लग रहा होगा कि वहां का मौसम, खाना, रनिंग ट्रैक या आवास व्यवस्था उनकी राह में बाधा हैं, पर सोनिया की दिक्कत पूरी तरह अलग थी, और इसे कोई नहीं सुलझा सकता था, यहां तक कि जूते बनाने वाली कंपनियां भी।
उनके पंजे यूके साइज 3- 8.7 इंच के हैं, ज्यादातर ब्रांड्स इस आकार के जूते स्टॉक नहीं करते। महिलाओं के रनिंग शूज आमतौर पर साइज 4 से शुरू होकर साइज 8 तक के होते हैं। यदि आप कुछ लेने दुकान में जा रहे हैं तो यह असुविधा नहीं होगी, लेकिन जब आपसे सेकंड्स में कई चक्कर लगाने की उम्मीद की जाती है और उन लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होती है, जिनके जूते पैरों में कसकर बंधे होते हैं, तो यह एक गंभीर समस्या है।
राज्य के खेल विभाग ने उन्हें जूते दिए, लेकिन उनकी साइज के नहीं थे। उनके पास दो ही विकल्प थे- रेस से हट जाएं या एक पुराने जोड़ी जूतों में दौड़ें, जिनकी कुशनिंग बहुत पहले खत्म हो चुकी थी, और उन्होंने दौड़ना चुना।
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इस वीकेंड जब वह 10 हजार मीटर रेस में दौड़ी, फिनिशिंग लाइन क्रॉस की और कांस्य पदक जीतने पर झुककर जमीन को चूमा, हालांकि वह हांफ रही थीं, पर इसी दौरान दर्शकों की फुसफुसाहट, सेलिब्रेशन के शोर से भी ज्यादा थी। यह आवाज सीधे उत्तराखंड के स्पेशल प्रिंसिपल सेक्रेटरी (खेल) अमित सिन्हा के कानों में पहुंची।
शाम तक उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि सोनिया को उनकी साइज के ब्रांड न्यू जूते मिल जाएं, जो कि उनकी जैसी रनर के लिए खास बने हों। सिन्हा ने कहा “उत्तराखंड खेल विभाग को सोनिया जैसे एथलीट का सपोर्ट करने पर गर्व है, जिनकी राज्य के लिए पदक जीतने की दृढ़ता चुनौतियों के बावजूद बेजोड़ है।”
बात यहीं खत्म नहीं हुई। सरकार ने उन्हें 6 लाख रुपए का नकद पुरस्कार और सरकारी नौकरी की भी घोषणा की। इस तरह अचानक उनका भविष्य भी कंफर्टेबल हो गया, जैसे कि नए जूते पहनने पर उनके पैर कंफर्टेबल हो गए।
सोनिया की कहानी में एक सबक भी छुपा हुआ है। अगर आपमें पढ़ाने का जज्बा है, तो अपनी क्लास में स्मार्ट स्क्रीन की राह मत देखिए। अगर आपकी टीचिंग विद्यार्थियों को प्रेरित करती है, तो मैनेजमेंट आपकी क्लास में स्मार्ट स्क्रीन लगवाने के लिए कुछ भी करेगा।
अगर हाथ से चलाने वाली मशीन में भी आपकी सिलाई एकदम परफेक्ट है तो कोई न कोई आपकी मशीन को अपग्रेड करके ऑटोमेटिक कर देगा। और अगर आपका लैपटॉप धीमा है, तो आपका काम देखकर बॉस भी कंप्यूटर अपग्रेड कर देगा। संक्षेप में कहूं तो अपनी क्षमताएं दिखाएं।
फंडा यह है कि जब आप खुद को लेकर आत्मविश्वास महसूस करते हैं, तो परफेक्ट एक्सेसरीज और माहौल का इंतजार न करें। बस काम पर जुट जाएं और फिर देखें कि भले आपको गोल्ड न मिले, लेकिन ब्रॉन्ज तो जीत ही लेंगे। और यह उस बेहतर गोल्ड की प्रतीक्षा करने से बेहतर है, जो हाथ में अभी नहीं है।
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हममें से कई लोगों ने 31 दिसंबर 2024 से पहले बेस्ट ब्रांडेड शोरूम से न सिर्फ बेस्ट जूते, बल्कि कम वजन वाली पानी की बोतल, बाल मैनेज करने के लिए माथे पर बांधने वाला बैंड और मोबाइल फोन रखने वाला भी कोई हैंड बैंड लिया होगा।
ऐसा इसलिए क्योंकि इस साल हममें से ज्यादातर लोग स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहते हैं और मॉर्निंग वॉक या जॉगिंग शुरू करना चाहते हैं। लेकिन नए साल में 42 दिन गुजरने के बाद अब नगर निगम के या प्राइवेट पार्क में इनकी संख्या सिमट गई है क्योंकि प्राथमिकताएं बदल गई हैं, कॉर्पोरेट यात्राएं आ गई हैं, देर रात तक दफ्तर में रुकना पड़ रहा है और भी कई कारणों में खराब मौसम भी एक वजह है।
और ये परफेक्ट एक्सेसरीज किसी कोने में पड़ी हुई हैं और उन्हें देखकर हम सबको थोड़ी ग्लानि भी होती है। लेकिन अगर आप ऐसे किसी को जानते हैं, जिनके जूते शेल्फ से नीचे उतरने के लिए मदद मांग रहे हैं तो उनके साथ सोनिया की कहानी जरूर साझा करिए। यह शायद उन्हें प्रेरित कर सके।
उत्तराखंड की 23 वर्षीय सोनिया, जो अपने पहले नाम से ही जानी जाती हैं, उन्होंने वहां चल रहे 38वें नेशनल गेम्स में हिस्सा लिया। कुछ प्रतिभागियों को लग रहा होगा कि वहां का मौसम, खाना, रनिंग ट्रैक या आवास व्यवस्था उनकी राह में बाधा हैं, पर सोनिया की दिक्कत पूरी तरह अलग थी, और इसे कोई नहीं सुलझा सकता था, यहां तक कि जूते बनाने वाली कंपनियां भी।
उनके पंजे यूके साइज 3- 8.7 इंच के हैं, ज्यादातर ब्रांड्स इस आकार के जूते स्टॉक नहीं करते। महिलाओं के रनिंग शूज आमतौर पर साइज 4 से शुरू होकर साइज 8 तक के होते हैं। यदि आप कुछ लेने दुकान में जा रहे हैं तो यह असुविधा नहीं होगी, लेकिन जब आपसे सेकंड्स में कई चक्कर लगाने की उम्मीद की जाती है और उन लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी होती है, जिनके जूते पैरों में कसकर बंधे होते हैं, तो यह एक गंभीर समस्या है।
राज्य के खेल विभाग ने उन्हें जूते दिए, लेकिन उनकी साइज के नहीं थे। उनके पास दो ही विकल्प थे- रेस से हट जाएं या एक पुराने जोड़ी जूतों में दौड़ें, जिनकी कुशनिंग बहुत पहले खत्म हो चुकी थी, और उन्होंने दौड़ना चुना।
इस वीकेंड जब वह 10 हजार मीटर रेस में दौड़ी, फिनिशिंग लाइन क्रॉस की और कांस्य पदक जीतने पर झुककर जमीन को चूमा, हालांकि वह हांफ रही थीं, पर इसी दौरान दर्शकों की फुसफुसाहट, सेलिब्रेशन के शोर से भी ज्यादा थी। यह आवाज सीधे उत्तराखंड के स्पेशल प्रिंसिपल सेक्रेटरी (खेल) अमित सिन्हा के कानों में पहुंची।
शाम तक उन्होंने ये सुनिश्चित किया कि सोनिया को उनकी साइज के ब्रांड न्यू जूते मिल जाएं, जो कि उनकी जैसी रनर के लिए खास बने हों। सिन्हा ने कहा “उत्तराखंड खेल विभाग को सोनिया जैसे एथलीट का सपोर्ट करने पर गर्व है, जिनकी राज्य के लिए पदक जीतने की दृढ़ता चुनौतियों के बावजूद बेजोड़ है।”
बात यहीं खत्म नहीं हुई। सरकार ने उन्हें 6 लाख रुपए का नकद पुरस्कार और सरकारी नौकरी की भी घोषणा की। इस तरह अचानक उनका भविष्य भी कंफर्टेबल हो गया, जैसे कि नए जूते पहनने पर उनके पैर कंफर्टेबल हो गए।
सोनिया की कहानी में एक सबक भी छुपा हुआ है। अगर आपमें पढ़ाने का जज्बा है, तो अपनी क्लास में स्मार्ट स्क्रीन की राह मत देखिए। अगर आपकी टीचिंग विद्यार्थियों को प्रेरित करती है, तो मैनेजमेंट आपकी क्लास में स्मार्ट स्क्रीन लगवाने के लिए कुछ भी करेगा।
अगर हाथ से चलाने वाली मशीन में भी आपकी सिलाई एकदम परफेक्ट है तो कोई न कोई आपकी मशीन को अपग्रेड करके ऑटोमेटिक कर देगा। और अगर आपका लैपटॉप धीमा है, तो आपका काम देखकर बॉस भी कंप्यूटर अपग्रेड कर देगा। संक्षेप में कहूं तो अपनी क्षमताएं दिखाएं।
फंडा यह है कि जब आप खुद को लेकर आत्मविश्वास महसूस करते हैं, तो परफेक्ट एक्सेसरीज और माहौल का इंतजार न करें। बस काम पर जुट जाएं और फिर देखें कि भले आपको गोल्ड न मिले, लेकिन ब्रॉन्ज तो जीत ही लेंगे। और यह उस बेहतर गोल्ड की प्रतीक्षा करने से बेहतर है, जो हाथ में अभी नहीं है।
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