एन. रघुरामन का कॉलम: ऊंची ‘एट्रिशन दर’ को आप कैसे संभालेंगे?

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एन. रघुरामन का कॉलम:  ऊंची ‘एट्रिशन दर’ को आप कैसे संभालेंगे?
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एन. रघुरामन का कॉलम: ऊंची ‘एट्रिशन दर’ को आप कैसे संभालेंगे?

58 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

इंदौर एयरपोर्ट के लाउंज में इस वीकेंड एक दिलचस्प वाक्या हुआ। वह व्यक्ति ऊंची कुर्सी पर बैठा हुआ था, जैसी बार काउंटर के इर्द-गिर्द होती हैं। मैं सोफे पर बैठ गया, जो कि उन लोगों के लिए होता है, जो कोई एल्कोहल ड्रिंक नहीं लेना चाहते। उस लाउंज के मालिक सुधांशु वहां आए। हम एक-दूसरे का हालचाल पूछ रहे थे कि बार पर बैठे व्यक्ति ने सुधांशु को बुलाया और कहा, ‘क्या आप हमारे लिए कुछ कटी हुई ककड़ी का इंतजाम कर सकते हैं?’

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सुधांशु ने तुरंत कहा, ‘क्यों नहीं?’ उन्होंने कुछ कप उठाए और सर्विंग स्टाफ को दिए और कहा, ‘कुछ ताजी ककड़ी लाओ, अच्छी तरह धोकर छोटे टुकड़ों में काट दो।’ मैं उस व्यक्ति के चेहरे को देख रहा था, जिसने शायद कुछ ड्रिंक्स पहले ही पी ली थीं। उसका चेहरा गर्व से चमक रहा था और उसकी आंखें उसके साथी को कह रही थीं, ‘देखो, इस जगह पर मेरी कितनी पकड़ है।’जैसे ही स्टाफ अंदर गया, घमंड से भरा वो व्यक्ति नाराज हो गया और सुधांशु से कहा, ‘आपका स्टाफ अच्छा नहीं हैं।’

उसने बारमैन की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘बस दो मिनट पहले आपके इस आदमी ने मुझे काली मिर्च व नमक डालकर साधारण-सी ककड़ी लाने से मना कर दिया था।’ सुधांशु पीछे सूप काउंटर की ओर मुड़े और वहां कुछ काली मिर्च-नमक उठाया और मुस्कराकर कहा, ‘यहां आपके लिए काली मिर्च व नमक है, चिंता मत करो, ककड़ी रसोई से आ रही है। खुलकर कहूं, तो ये सिर्फ एक लाउंज है, जहां शराब के अलावा किसी और चीज की बिलिंग नहीं कर सकते और यहां मौजूद सामान पर हमेशा सख्त नजर रहती है।

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इसलिए वे छोटे-मोटे निर्णय लेने में भी डरते हैं।’ 40 मिनट बाद उन दोनों ग्राहकों ने बिल चुकाया और बारमैन को 20 रुपए टिप देने की कोशिश की। उसने लेने से मना कर दिया क्योंकि उस लाउंज के मालिक अभी भी मेरे साथ बात कर रहे थे। चूंकि ग्राहक चार ड्रिंक्स के बाद थोड़े नशे में था, उन्होंने चिल्लाकर कहा, ‘आप इसे लेंगे या नहीं?’ ये तेज आवाज सुनकर सुधांशु फिर से काउंटर पर गए और महसूस किया कि ग्राहक नशे में है और खुद को सही साबित करना चाहते हैं।

सुधांशु ने विनम्रता से कहा, ‘सर, चूंकि मैं यहां हूं, इसलिए वे आपकी इस उदारता के साथ की गई पेशकश को स्वीकार करने में संकोच कर रहे हैं, इसे मुझे दे दें, मैं इसे सौंप दूंगा।’ यात्री ने अपने दोस्त की ओर देखा, जिसका मतलब था ‘देखा?’ और चला गया। मेहमानों के जाने के बाद, बारमैन को फाइनेंस पर एक क्रैश कोर्स दिया गया।

सुधांशु ने कहा, ‘याद रखो, जब कोई गेस्ट कुछ सैकड़ों रुपए खर्च करके आपका प्रोडक्ट ले रहा है, तो आप उसके 10 रुपए की ककड़ी का निर्णय क्यों नहीं ले सकते? भले ही ककड़ी की कीमत 50 रुपए हो, पर बिजनेस तब भी फायदे में होगा।’ उन्होंने आगे कहा, ‘नशे की हालत में रहने वाले किसी भी कस्टमर से कभी बहस न करें क्योंकि उसकी तेज आवाज यहां बैठे बाकी लोगों को परेशान कर सकती है।’ और तब सुधांशु ने एयरपोर्ट लाउंज में कर्मचारियों के रिटेंशन की समस्या बताई। रिटेंशन यानी कर्मचारियों का जल्दी-जल्दी नौकरी छोड़ना।

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चूंकि एयरपोर्ट लाउंज में नकद पैसों का लेन-देन नहीं होता, इसलिए यात्री भी हॉस्पिटैलिटी कर्मचारियों को टिप नहीं देते। अतिरिक्त आय हमेशा नौकरी में बने रहने की प्रेरणा होती है, ऐसे में एयरपोर्ट की शुरुआती चकाचौंध हटने के बाद सर्विस देने वाले एयरपोर्ट स्टाफ बेहतर अवसरों की तलाश में जल्दी-जल्दी नौकरी छोड़ते हैं। इसलिए इन्वेंट्री पर नजर रखने वाले उद्यमियों (जो कि फूड तैयार करने वाले बिजनेस में कठिन काम है) को लगातार रिप्लेसमेंट पर नजर रखनी पड़ती है और वे छोटी जगहों के युवा कर्मचारियों को लाते हैं, जो शहर और उसकी चमक से आकर्षित होते हैं।

फंडा यह है कि अगर अतिरिक्त पारिश्रमिक उच्च एट्रिशन रेट से निपटने का तरीका नहीं है, तो उद्यमियों और फ्लोर मैनेजर्स को उन्हें बनाए रखने के लिए कई और तरीकों का इस्तेमाल करना होगा। उनकी सराहना और उनके आसपास रहकर उनकी पीठ थपथपाना भी एक तरीका है। अगर आपके पास कोई नया विचार है तो मेरे साथ साझा करें।

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