एजेंट बोलता था- गोली मार दो इसे: कमोड का पानी पिलाया, 35 लाख खर्च कर बेटे को अमेरिका भेजा, गांव वाले मजाक उड़ा रहे

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एजेंट बोलता था- गोली मार दो इसे:  कमोड का पानी पिलाया, 35 लाख खर्च कर बेटे को अमेरिका भेजा, गांव वाले मजाक उड़ा रहे
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एजेंट बोलता था- गोली मार दो इसे: कमोड का पानी पिलाया, 35 लाख खर्च कर बेटे को अमेरिका भेजा, गांव वाले मजाक उड़ा रहे

‘अमेरिका से बेदखल’ सीरीज के चौथे एपिसोड में पढ़िए अमेरिका से जबरन पंजाब लाए गए मनदीप सिंह और आकाशदीप की कहानी…

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गांव के एक एजेंट ने कहा था कि 15 दिन में वो वीजा लगाकर मुझे अमेरिका भेज देगा। 35 लाख रुपए में डील हुई। तब मैं स्पेन में था। एजेंट ने स्पेन से बोलिविया तक ही फ्लाइट करवाई। उसके बाद डंकी रूट में डाल दिया। बोला- ऐसे ही अमेरिका जाना पड़ेगा। वहां से 4 महीने में कार-बस और पनामा के खतरनाक जंगलों से गुजरते हुए मेक्सिको सिटी पहुंचा।

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रास्ते में हर जगह एजेंट का आदमी यानी डोंकर कहता- तुम्हारे एजेंट ने अभी तक पैसे नहीं भेजे हैं। एजेंट से बात करता तो वो कहता- आज ही भेज दूंगा, कल भेज दूंगा। मैं बोलिविया से मेक्सिको पहुंच गया, लेकिन एजेंट ने डोंकर को पैसे नहीं भेजे।

पैसों के लिए डोंकर मुझे मारने-पीटने लगा। मेक्सिको में ही एक सिटी है मैक्सिकली। वहां डोंकर ने मुझे कमरे में बंद कर दिया। कमोड का पानी पिलाया। बोला- जब तक पेमेंट नहीं मिलेगा, तुम यही रहोगे। डोंकर जब फोन करता तो एजेंट कहता, गोली मार दो उसे। डोंकर का कहना था कि यदि पैसे नहीं मिले, तो सच में गोली मार देंगे। कनपटी पर बंदूक सटा देता था।’

ये किस्सा कहते हुए पंजाब के तरन-तारन जिले के मनदीप सिंह की आवाज भारी हो जाती है। कुछ देर रुककर कहते हैं- रात में मुझे सपने आते हैं कि कहीं डोंकर सच में गोली न मार दे…।

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अमेरिका से निकाले गए पंजाब के तरन तारन जिले के मनदीप सिंह।

पहली कहानी : अमृतसर से सटे तरन तारन जिले के मनदीप सिंह की मनदीप के घर के बाहर ही सेनेटरी की दुकान है। ये दुकान उनके बड़े भाई गुरु इकबाल सिंह की है। दुकान के बाहर मनदीप की मां शरणजीत कौर और पिता नौनिहाल सिंह बैठे हैं।

नौनिहाल सिंह चाय पीते हुए बोल पड़ते हैं, ‘बहुत नुकसान हो गया। 50 लाख रुपए डूब गए। जमीन बेचकर और कर्ज लेकर एजेंट को पैसे दिए थे। सब तबाह हो गया। अब क्या कर सकते हैं। बेटा जिंदा बचकर आ गया, यही मेरे लिए धन है। वो लोग गोली मार देते तो क्या होता।’

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ऐसा लगता है कि नौनिहाल सिंह बोलते-बोलते रो पड़ेंगे। दुकान के काउंटर पर मनदीप के बड़े भाई बैठे हैं।

मां शरणजीत कहती हैं- ‘मनदीप के साथ जो हुआ, उसके बाद से मेरी तबीयत खराब रहने लगी है। चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया है। मैंने तो मना ही किया था कि स्पेन में हो। ठीक-ठाक पैसे कमा ही रहे हो। अमेरिका जाना है, तो लीगल तरीके से जाओ। ये एजेंट वाला ठीक नहीं, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। अब पछताकर भी क्या कर सकते हैं।’

मनदीप और उनकी मां शरणजीत कौर।

मैंने मनदीप के बारे में पूछा तो नौनिहाल सिंह रूखे मन से कहते हैं, ‘बस थोड़ी देर में आ रहा है। जब से अमेरिका से आया है, सोता ही रहता है।’

कुछ देर बाद मनदीप मुझे दुकान से घर के अंदर बने आंगन में ले जाते हैं। एक-डेढ़ साल पहले ही मनदीप ने स्पेन की कमाई से यह घर बनवाया है।

कहते हैं, ‘हमारे पास खेती नहीं है। दो-तीन कैनाल जमीन थी, वो भी एजेंट को पैसे देने के लिए बेच दी। जब यहां पर कुछ भी नहीं था, तो पापा 1993 में दुबई चले गए। 7-8 साल तक उन्होंने वहां पर ट्रॉली चलाई। फिर गांव आ गए।

बड़े भाई ने 7 साल पहले सेनेटरी की दुकान खोली। मैं 12वीं के बाद जॉब की तैयारी कर रहा था। कई सरकारी नौकरी के पेपर दिए, लेकिन किसी में नहीं हुआ। आसपास के कई लोग विदेश में रहते हैं।

मैंने भी सोचा कि विदेश जाऊंगा, तो दिन बदल जाएंगे। 2022 की बात है। एक एजेंट ने 15 लाख लेकर स्पेन का वीजा लगवा दिया। वहां करीब 2 साल रहा। पहले रेस्टोरेंट में किचन साफ करने का काम करता था, फिर शेफ का काम करने लगा। दिन के 11 बजे जाता, रात के 3 बजे आता। ओवर टाइम नौकरी करके महीने का डेढ़-दो लाख रुपए हो जाता था।’

पिता नौनिहाल सिंह का कहना है कि मनदीप को स्पेन भेजने में 15 लाख लगे थे और फिर वहां से अमेरिका भेजने में 35 लाख लगे।

फिर अमेरिका जाने का ख्याल कैसे?

‘मेरा एक दोस्त कुछ साल से अमेरिका में ही था। उसने कहा तुम भी आ जाओ। यहां बहुत पैसा है। किसी एजेंट से सेटिंग करवा लो, जल्दी आ जाओगे। मैंने सोचा कि यहां के किसी एजेंट से बात करूंगा, तो शायद धोखा दे देगा। पैसे लेकर भाग जाएगा।

मैंने पापा को फोन पर कहा कि मुझे अमेरिका जाना है। पंजाब के किसी एजेंट से बात करो। पापा ने अगल-बगल से पता किया। एक एजेंट ने कहा- ’15 दिन में स्पेन से अमेरिका पहुंचा दूंगा।’

एजेंट हर दूसरे दिन 2-4 लाख रुपए लेकर जाता था। कहता था- ‘ये पैसे आगे दूसरे एजेंट को भेजने हैं।’

मनदीप बताते हैं- ‘मैं लगातार उससे बात करता रहता कि कब-कैसे निकलना है स्पेन से। पैसे जुटाने के लिए जो कुछ भी था- जमीन जायदाद, जमा-पूंजी, रिश्तेदारों से कर्ज लेकर सब कुछ दे दिया।

मेरे एजेंट ने अगस्त में स्पेन से बोलिविया की टिकट करवा दी। वहां पहुंचकर दूसरे एजेंट के पास अपना फोटो लेकर गया। उसने मुझे कहा- तुम्हारा पेमेंट अभी तक नहीं आया है।

एजेंट मुझे ग्रुप से अलग कर देते थे। कहते थे- जब तक पैसा नहीं आएगा, तुम्हें आगे लेकर नहीं जाएंगे। मुझे लगा कि फ्लाइट से अमेरिका भेजेंगे, लेकिन आखिर में डंकी रूट से ही ले गया।

करीब 4 महीने में बोलिविया से पेरू, इक्वाडोर, कोलंबिया के रास्ते पनामा जंगल होते हुए मेक्सिको पहुंचा। साथ में रास्ता बताने के लिए एजेंट का एक आदमी था, जिसको डोंकर कहते हैं।’

मनदीप के भाई गुरु इकबाल सिंह सेनेटरी की दुकान चलाते हैं। विदेश जाने के सवाल पर हाथ जोड़ लेते हैं।

मनदीप बताते हैं- ‘रास्ते में हर जगह डोंकर मुझे मारते-पीटते थे। कभी थप्पड़ मार देते, कभी लात-घूंसे, तो कभी बाल खींचकर पीटते। मैं जब कहता कि मुझे क्यों मार रहे हो, तो गाली देते हुए कहते- तुम्हारे एजेंट ने पैसे नहीं भेजे हैं। जल्दी पैसा भेजने को बोलो। मैं पापा को, भाई को फोन करके कहता, एजेंट को बोलो पैसे भेजे, लेकिन एजेंट हर बार बहाना बनाकर टाल देता।

जनवरी में हम मेक्सिको होते हुए अमेरिका पहुंचने वाले थे। इससे पहले ही डोंकर ने मुझे एक होटल के कमरे में कैद कर लिया।

4 दिनों तक बेल्ट से, रॉड से मुझे मारता रहा। मैंने घरवालों को कुछ नहीं बताया, वरना सब परेशान हो जाते। 6 दिन तक डोंकर ने खाना भी नहीं दिया। 6 दिन के बाद मुझे एक पिज्जा दिया। कमोड का पानी पीना पड़ा।

डोंकर ने मेरे कपड़े, मोबाइल, कानों की बाली, सोने की चेन, जो भी था, सब छीन लिया।

जब डोंकर फोन पर एजेंट से बात करता तो मैं सुनता रहता था। एजेंट से डोंकर कहता, पैसे नहीं आएंगे, तो इसे गोली मार देंगे।

एजेंट कहता- मार दो गोली। हम कुछ नहीं जानते हैं।

जब मैंने ये बातें सुनी, तब 13वें दिन घरवालों को फोन किया, कहा- पापा ये मुझे गोली मार देंगे। आप कैसे भी करके, पैसे अरेंज करके इसे भेज दो। मैंने जैसे-तैसे पूरे पैसे दिए, तब उसने मुझे आगे जाने दिया।

मनदीप के हाथ में FIR की कॉपी है। उन्होंने एजेंट के खिलाफ धोखाधड़ी का केस किया है।

मनदीप कहते हैं- ‘मेक्सिको से अमेरिका में दाखिल होने की दीवार 35-40 फीट ऊंची है। एक जगह दीवार टूटी हुई है, उसी रास्ते से मुझे डोंकर ने अमेरिका में दाखिल करवाया। जैसे ही अमेरिका में दाखिल हुआ, पुलिस ने पकड़ लिया।

यहां मुझे करीब 15 दिनों तक रखा। 2 फरवरी की बात होगी। मेरे साथ जितने लोग थे, सभी को अमेरिकी फोर्सेज ने पैर में बेड़ियां और हाथ में हथकड़ी लगाकर एक बस में बिठा दिया।

फिर हवाई अड्डे पर सेना के जहाज में एक-एक करके सबको बिठा दिया। बेड़ियों से मेरे पैर छिल गए। 40 घंटे सिर्फ जूस और सैंडविच खाकर रहा। किसी आतंकवादी जैसा सलूक किया जा रहा था।

मनदीप मुझे FIR की कॉपी दिखाते हैं। कहते हैं, ‘अमेरिका से भेजे जाने के तुरंत बाद मैंने एजेंट के खिलाफ FIR दर्ज करवा दी है। अब पुलिस मामले की छानबीन कर रही है। एजेंट भाग गया है।

घरवाले पैसे न भेजते, तो डोंकर मुझे गोली मार देते। अब यहीं पर दिहाड़ी करूंगा। चपरासी की भी नौकरी करूंगा, लेकिन कभी अमेरिका जाने का नहीं सोचूंगा। जाऊंगा भी तो लीगल तरीके से, वीजा लगाकर।’

दूसरी कहानी : अमृतसर के आकाशदीप की मनदीप से बातचीत करने के बाद मैं अमृतसर के राजाताल गांव के लिए निकल पड़ता हूं। अटारी से सटे पाकिस्तान बॉर्डर पर बसे इस गांव में लहलहाते खेतों के बीच स्वर्ण सिंह का घर है। इनके बेटे आकाशदीप को अमेरिका ने बेदखल कर दिया है। 65 लाख रुपए खर्च करके वे अमेरिका गए थे।

जब मेरी स्वर्ण सिंह से फोन पर बात हुई थी, तो उनका कहना था कि आकाशदीप भी घर पर रहेगा। आ जाइए, लेकिन जब हम वहां पहुंचे, तो आकाशदीप नहीं आए।

लाल रंग का टी-शर्ट पहने और माथे पर काले रंग की पगड़ी बांधे स्वर्ण सिंह कहते हैं, ‘जिस दिन आपने फोन किया, मैंने उससे बोला था। उसने कहा कि मैं आ जाऊंगा, लेकिन अब नहीं आ रहा है। जब से अमेरिका से आया है, सदमे में है। दोस्त के यहां ही सोया रहता है।

हम लोगों से भी कोई बातचीत नहीं कर रहा है। कुछ बोलता ही नहीं है। इसकी मां दिलजीत डिप्रेशन की दवाई खा रही है। अचानक चीखने-चिल्लाने लगती है। रोने लगती है। कलेजा पीटने लगती है।’

ये आकाशदीप के पिता स्वर्ण सिंह हैं। 65 लाख रुपए खर्च करके इन्होंने बेटे को अमेरिका भेजा था।

स्वर्ण सिंह चार भाई हैं। सभी का घर एक कतार में बना हुआ है। सबसे पुराना और खस्ताहाल स्वर्ण सिंह का ही घर दिख रहा है। वे कहते हैं, ‘अब बस यही घर बचा है और कुछ भी नहीं। 8 मवेशी थे, वो भी बेच दिए।

कुछ जमीन भतीजे को 20 लाख में बेच दी। बाकी की जमीन पर बैंक से लोन ले लिया। अब इतना भी नहीं है कि खेती करूं। हर रोज बैंक वाले ब्याज मांगने आते हैं। कहां से दें। 65 लाख का कर्ज है। अपना खून और किडनी भी बेच दूं, तब भी ये कर्ज नहीं चुका पाऊंगा।’

स्वर्ण सिंह की पत्नी दिलजीत बरामदे से निकलकर दरवाजे पर आ जाती हैं। वे पत्नी को ढांढस बंधाते हुए कहते हैं, ‘कम से कम हमारा बेटा जिंदा आ गया। उनका क्या होता होगा जिनके बेटे वहीं मर गए।

चिंता में कई रात जागकर गुजार रहा हूं। अब तो पेट भरना भी मुश्किल है। आकाशदीप इकलौता बेटा है। उम्मीद थी कि बड़ा होकर घर-परिवार संभालेगा। 12वीं तक आकाशदीप पढ़ने में ठीक था। फिर 4 साल तक उसने नौकरी की तैयारी की, लेकिन नहीं मिली, तब वह विदेश जाने के सपने देखने लगा।

2024 के जुलाई की बात है। वह दुबई चला गया। वहां के एजेंट ने उसका वीजा तो बनवाकर भेजा था, लेकिन वर्क परमिट नहीं दिलवाया। इस वजह से 4 महीने तक वह दुबई में फंसा रहा।’

स्वर्ण सिंह अपनी पत्नी दिलजीत कौर के साथ। बेटे की वजह से दिलजीत डिप्रेशन की दवा खा रही हैं।

स्वर्ण सिंह कहते हैं- ‘हर रोज बेटा फोन करके एक ही बात बोलता- पापा जैसे ही अमेरिका पहुंच जाऊंगा, सब कर्ज उतर जाएगा। अपनी गाड़ी-कोठियां होंगी। आपको भी यहीं सेटल करवा दूंगा। बेटा जैसा कहता गया, मैं मानता गया।

किसी से पूछा भी नहीं कि जो मैं कर रहा हूं, सही कर रहा हूं या गलत। पहले एजेंट ने बोला कि फ्लाइट से भेजेंगे, फिर डंकी रूट से भेज दिया। जनवरी में वह मेक्सिको पहुंचा, जहां उसे गिरफ्तार कर लिया।

65 लाख डूबने के बाद अब ऐसा लगता है कि ऐशो-आराम के लालच में अपना सब कुछ गंवा दिया। आसपास के लोग मजाक उड़ाते हैं। कहते हैं, ‘गया था अमेरिका, अब यहां दिहाड़ी करेगा।

कभी-कभी तो खुद को खत्म करने का भी मन करता है। बेटे को इतना बड़ा सदमा लगा है कि न किसी से मिलता है, न बात करता है। एक दोस्त के यहां शादी थी। सब गए, लेकिन आकाशदीप एक कोने में चादर से मुंह ढंककर सोया हुआ था। ऐसा लगता है कि पागल हो जाएगा…।’

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