एक हजार को कुर्बानी के लिए तैयार रहने को कहा, सिखों को अपने भाषण से कैसे भड़का रहा था अमृतपाल, पढ़ें
अधिकारियों ने कहा कि अमृतपाल ने अपने भाषणों और धर्मोपदेशों के दौरान आरोप लगाया कि सरकार सिखों को उनके हथियारों के लाइसेंस को रद्द कर निहत्था करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। पिछले साल ‘वारिस पंजाब दे’ के संस्थापक अभिनेता-कार्यकर्ता दीप सिद्धू की मृत्यु के बाद अमृतपाल संगठन का प्रमुख बना था। राज्य में 18 मार्च को पुलिस की ओर से अमृतपाल के खिलाफ बड़ी कार्रवाई शुरू करने और उसके कई समर्थकों को गिरफ्तार किए जाने के बाद से उपदेशक फरार है।
पंजाब के शांतिपूर्ण माहौल को खराब करने का था इरादा
उपदेशक और उसके समर्थकों की ओर से गिरफ्तार एक सहयोगी की रिहाई के लिए 23 फरवरी को अमृतसर के पास अजनाला थाना पर धावा बोलने के कुछ हफ्तों बाद यह कार्रवाई शुरू की गई। अजनाला प्रकरण से पाकिस्तान की सीमा से लगे पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद की वापसी की आशंका जताई गई।
अधिकारियों ने कहा कि उपदेशक ने कथित तौर पर पंजाब की आने वाली पीढ़ियों के लिए ‘खालसा शासन’ हासिल करने को लेकर युवाओं को एकजुट होने के लिए उकसाया। उन्होंने कहा कि अजनाला की घटना ने राज्य में खालिस्तानी उग्रवाद के फिर से जड़ें जमाने की आशंकाओं को जगा दिया। उन्होंने कहा कि अमृतपाल सिंह का इरादा पंजाब के शांतिपूर्ण माहौल को खराब करना था और यह बरिंदर सिंह के अपहरण और हमले से स्पष्ट है।
बरिंदर सिंह को किडनैप कर मारपीट की गई थी
बरिंदर सिंह ने अपनी शिकायत में पुलिस से कहा था कि अमृतपाल के सहयोगियों ने अजनाला से उनका अपहरण कर लिया था और अज्ञात जगह ले जाकर उनसे मारपीट की गई। दुबई में रह चुके अमृतपाल के समर्थकों ने आरोपी तूफान सिंह की रिहाई के लिए थाने पर धावा बोला था। अधिकारियों के अनुसार, अजनाला की घटना के दौरान, उसने खुले तौर पर अधिकारियों को चुनौती दी। घटना में कुछ पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे।
अधिकारियों ने कहा कि कि अमृतपाल ने अन्य धर्मों को निशाना बनाने वाले भड़काऊ भाषण देकर सांप्रदायिक तनाव फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उन्होंने आरोप लगाया कि अमृतपाल ने हिंसा और हथियार की संस्कृति को भी बढ़ावा दिया, व अपने घातक एजेंडे के लिए युवाओं का शोषण किया और अपना निजी मिलिशिया ‘आनंदपुर खालसा फौज’ बनाया।
इससे पहले, अधिकारियों ने कहा था कि भगोड़ा उपदेशक नशा करने वालों और असंतुष्ट पूर्व सैनिकों का गिरोह बनाना चाहता था, जिसे आसानी से आतंकवादी संगठन में बदला जा सकता था। अधिकारियों ने जोर दिया कि अगर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत कार्रवाई नहीं की गई होती, तो ‘वारिस पंजाब दे’ के सदस्य बच जाते।