उड़ान भरते ही क्यों गिर गया विमान: टेकऑफ के समय कम स्पीड, डबल इंजन फेल्योर या हैवी लोड; आखिर क्रैश की वजह क्या h3>
एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 ने दोपहर 1:38 बजे अहमदाबाद एयरपोर्ट के रनवे नंबर 23 से उड़ान भरी। टेकऑफ के फौरन बाद विमान के पायलट सुमित सुब्बरवाल ने इमरजेंसी मे-डे (May day) कॉल दी।
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अगले ही मिनट विमान की ट्रैजेक्टरी हवा में ऊपर उठने की बजाए नीचे की तरफ जाती दिखी। दोपहर 1.40 पर ये विमान एयरपोर्ट से सटे रिहायशी इलाके में गिर गया और काले धुएं का तेज गुबार उठा। विमान में कुल 242 लोग सवार थे।
आखिर उड़ान भरते ही क्यों गिर गया विमान और कैसे सामने आएगा पूरा सच; जानेंगे NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर में…
सवाल-1: उड़ान भरते ही विमान क्रैश हो जाने की क्या वजह हो सकती है?
जवाबः एयर इंडिया की फ्लाइट AI-171 के क्रैश होने की वजहों पर अभी तक कोई आधिकारिक सूचना नहीं आई। हालांकि क्रैश के वीडियो, फ्लाइट की ट्रैजेक्ट्री और बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर की हिस्ट्री देखते हुए एविएशन एक्सपर्ट्स क्रैश की कई संभावनाएं जता रहे हैं…
संभावना-1: टेकऑफ करते ही दोनों इंजन में एक साथ खराबी आ गई
- किसी भी एयरक्राफ्ट के लिए टेकऑफ और लैंडिंग जोन सबसे खतरनाक होते हैं। इस दौरान 3 बड़े खतरे होते हैं- इंजन का फेल्योर, मौसम की वजह से टर्बुलेंस और बर्ड हिट।
- एयर कोमोडोर (रिटायर्ड) एस. पी. सिंह के मुताबिक, ‘विमान के पायलट सुमित सुब्बरवाल ने आखिरी मौके पर इमरजेंसी मे-डे (May day) कॉल दिया था। यानी पायलट के पास मदद मांगने का समय था, लेकिन प्लेन कंट्रोल करने का नहीं।’
- एस.पी. सिंह बताते हैं, ‘यह दो इंजन वाला एयरक्राफ्ट है यानी अगर एक इंजन फेल हो गया तो दूसरा इंजन इतना पावरफुल होता है कि सेफ लैंडिंग करा सकता है। इस हादसे की वजह दोनों इंजन फेल होना हो सकता है।’
- एविएशन एक्सपर्ट अनंत सेठी कहते हैं कि जहाज के क्रैश होने से पहले जो वीडियो आया है, उससे जांच में बहुत मदद मिलेगी। इस वीडियो को देखने से ऐसा लगता है कि वो ऊपर उठ रहा है, लेकिन अगर गौर करें तो उसकी नोज नीचे और टेल झुकी हुई है। पायलट ने विमान को ऊपर उठाने की कोशिश की, लेकिन वजह से वह नीचे ही गिरता गया। संभावना है कि दोनों इंजन फेल हो गए हों।
संभावना-2: पायलट ने रनवे का पूरा इस्तेमाल नहीं किया
- ड्रीमलाइनर जैसे भारी विमान को एयरोडायनामिक्स के हिसाब से सही टेक-ऑफ के लिए लंबा रनवे चाहिए होता है। एविएशन एक्सपर्ट अनंत सेठी के मुताबिक, ‘ये एक ह्यूमन एरर भी हो सकता है। क्योंकि जहाज को एक फॉरवर्ड स्पीड चाहिए होती है। इसके लिए उसे रनवे पर दौड़ाना पड़ता है। हो सकता है कि पूरे रनवे का इस्तेमाल न किया गया हो, जिससे जहाज को जरूरी फॉरवर्ड स्पीड नहीं मिली और वो टेक ऑफ नहीं कर पाया।’
- हालांकि फ्लाइट ट्रैक करने वाली वेबसाइट फ्लाइट राडार24 के मुताबिक विमान ने रनवे-23 से टेकऑफ किया, जो 11,499 फीट लंबा है। फ्लाइट पहले बैकट्रैक होकर रनवे के शुरुआती पॉइंट पर गई और फिर पूरा रनवे का इस्तेमाल किया। इसलिए ये संभावना कम हो जाती है। डेटा दिखा रहा है कि विमान ने 625 फीट की ऊंचाई हासिल कर ली थी, जो टेक-ऑफ के लिए काफी है।
संभावना-3: गर्मी से फ्यूल डेंसिटी घटी, इंजन को पावर नहीं मिली
- जब विमान ने टेक ऑफ किया, तो अहमदाबाद का तापमान करीब 43 डिग्री सेल्सियस था। एविएशन एक्सपर्ट अनंत सेठी बताते हैं, ‘विमान का इंजन फ्यूल और हवा के मिश्रण से चलता है। इसमें 1 किलो फ्यूल और 4 किलो हवा होती है। गर्मियों में ये अनुपात बिगड़ जाता है, क्योंकि हवा की डेंसिटी कम हो जाती है और वह फैलने लगती है। इससे फ्यूल इंजन को जरूरी पावर सप्लाई नहीं कर पाता। मान लीजिए किसी दिन 30 डिग्री तापमान है और फ्यूल से इंजन को 100 यूनिट एनर्जी मिल रही है। अगर अहमदाबाद में 43 डिग्री तापमान है तो इंजन को 60 यूनिट ही एनर्जी मिलेगी।’
- पॉलिटिकल पायलट नाम के X यूजर फ्लाइट के टेकऑफ का एक स्क्रीनशॉट शेयर करते हुए लिखते हैं, ‘मुझे यकीन है कि पायलट्स ने फ्लैप्स को 0 पर सेट किया था। फ्लैप्स को 5 या 15 डिग्री पर सेट करना चाहिए था। हवा के तापमान और पूरी तरह भरे ईंधन के साथ, इससे विमान 100% ऊंचाई नहीं ले पाता।’
भारतीय वायुसेना के एक ग्रुप कैप्टन पहचान उजागर न करने की शर्त पर बताते हैं,
जो वीडियो मैंने देखे हैं, उससे यही लगता है कि पायलट्स के पास रिकवर करने का कोई रास्ता नहीं था। अब ये एरर ऑफ जजमेंट था या कोई फेलियर या कुछ और, ये तब ही पता चलेगा जब कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर और फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर निकलेगा।
सवाल-2: ब्लैक बॉक्स क्या है और क्रैश की जांच में कितना अहम?
जवाबः किसी भी विमान हादसे की जांच में सबसे अहम भूमिका ब्लैक बॉक्स की होती है। इसे ऐसे डिजाइन किया जाता है कि खतरनाक क्रैश होने के बावजूद भी कोई नुकसान न हो और ये सुरक्षित रहे। ब्लैक बॉक्स के बिना जांचकर्ताओं को यह समझना मुश्किल होता कि हादसा क्यों हुआ। यह पायलट की गलती, तकनीकी खराबी, मौसम या बाहरी हमलों को पहचानने में मदद करता है।
सवाल-3: कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर क्या होता है और ये कितना अहम? जवाबः कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर यानी CVR एक छोटा, मजबूत इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है जो विमान के कॉकपिट में होने वाली सभी आवाजों को रिकॉर्ड करता है। यह ब्लैक बॉक्स का हिस्सा होता है और इसका रंग भी चमकीला नारंगी होता है। इसमें पायलट और क्रू के बीच की बातचीत, पैसेंजर की बीच की बातचीत और पायलट की एयर ट्रैफिक कंट्रोल से होने वाली बातचीत रिकॉर्ड होती है।
CVR हर रिकॉर्डिंग के साथ समय और तारीख भी रिकॉर्ड करता है, ताकि जांचकर्ता यह समझ सकें कि घटना कब और किस तरह हुई। आमतौर पर कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर को विमान के सबसे पिछले हिस्से में फिट किया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि ये हिस्सा सबसे आखिर में हादसे का शिकार होता है।
CVR पायलट की एयर ट्रैफिक कंट्रोल से होने वाली बातचीत रिकॉर्ड करता है।
CVR को बहुत मजबूत बनाया जाता है ताकि यह क्रैश, आग, पानी, या भारी दबाव में भी सुरक्षित रहे। यह स्टील या टाइटेनियम के डिब्बे में बंद होता है और इसे 3,400 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी, 5,000 G फोर्स तक का झटका और समुद्र में 20,000 फीट की गहराई तक का दबाव सहन करने के लिए डिजाइन किया जाता है।
CVR 5 तरह से काम करता है…
- माइक्रोफोन: CVR कॉकपिट में लगे कई माइक्रोफोन्स से आवाजें कैप्चर करता है। ये माइक्रोफोन आमतौर पर कॉकपिट की छत, पायलटों के हेडसेट और अन्य जगहों पर लगे होते हैं।
- रिकॉर्डिंग सिस्टम: CVR में एक मेमोरी यूनिट होती है जो डिजिटली ऑडियो डेटा स्टोर करती है। पुराने CVR में टेप का इस्तेमाल होता था, लेकिन अब आधुनिक CVR पूरी तरह डिजिटल हैं।
- लूप रिकॉर्डिंग: CVR लगातार रिकॉर्ड करता है, लेकिन यह एक ‘लूप’ सिस्टम पर काम करता है। यानी यह सिर्फ आखिरी 2 घंटे की रिकॉर्डिंग रखता है। पुरानी रिकॉर्डिंग अपने आप मिट जाती है और नई रिकॉर्डिंग उसकी जगह ले लेती है।
- पावर सप्लाई: CVR को विमान की बिजली से पावर मिलती है, लेकिन इसमें बैकअप बैटरी भी होती है जो क्रैश के बाद भी कुछ समय तक काम करती है।
CVR 5 बड़ी वजहों के चलते विमान हादसे में बहुत अहम हो जाता है…
- घटना का क्रम समझना: CVR से पता चलता है कि क्रैश से पहले पायलट क्या बात कर रहे थे, क्या निर्णय ले रहे थे और विमान में क्या समस्याएं थीं।
- ह्यूमन एरर की जांच: अगर पायलटों ने कोई गलती की, जैसे गलत बटन दबाना या ATC के निर्देशों का पालन न करना, तो CVR इसे रिकॉर्ड करता है।
- तकनीकी खराबी का पता लगाना: कॉकपिट में आने वाली चेतावनियां या असामान्य आवाजें यानी इंजन की खराबी भी CVR में रिकॉर्ड होती हैं, जो तकनीकी कारणों को समझने में मदद करती हैं।
- सुरक्षा में सुधार: CVR की रिकॉर्डिंग की जांच करके DGCA या FAA भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए नियम और ट्रेनिंग में सुधार करते हैं।
- कानूनी और बीमा मामलों में: CVR रिकॉर्डिंग का इस्तेमाल कोर्ट या बीमा जांच में सबूत के तौर पर किया जा सकता है।
सवाल-4: ब्लैक बॉक्स और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर का डेटा एनालाइज करने में कितना वक्त लगेगा? जवाबः विमान क्रैश के डेटा को 5 पॉइंट्स में एनालाइज किया जाएगा…
- आमतौर पर ब्लैक बॉक्स और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर से निकलने वाले डेटा को 10-15 दिन में एनालाइज किया जाता है। इस बीच, हादसे से ठीक पहले एयर ट्रैफिक कंट्रोलर यानी ATC से पायलटों की बातचीत को एनालाइज करते हैं।
- जांच अधिकारियों को यह समझने में मदद करता है कि क्या पायलटों को पता था कि विमान हादसे की ओर बढ़ रहा है। यह भी समझ आ रहा है कि विमान को काबू करने में क्या उन्हें दिक्कत हुई।
- इसके अलावा जांच अधिकारी एयरपोर्ट पर अलग-अलग डेटा रिकॉर्डर को भी देखते हैं। यह रनवे पर टच डाउन के पॉइंट और इस समय विमान की स्पीड बताते हैं।
- आखिर में डेटा एनालाइज करने के बाद DGCA, NTSB या BEA जैसी जांच एजेंसियां रिपोर्ट तैयार करेंगी। इसमें क्रैश के कारण, जिम्मेदारी और भविष्य में सुधार के सुझाव शामिल होंगे।
- CVR और FDR डेटा को अन्य सबूतों यानी मलबे की जांच और गवाहों के बयान के साथ फाइनल रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
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रिसर्च सहयोग- जाहिद अहमद
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