इजराइली निशाने पर थी नतांज अंडरग्राउंड लैब: ईरान ने ऐसी क्या टेक्नोलॉजी हासिल की, जो इजराइल ने 200 लड़ाकू विमानों से हमला कर दिया h3>
ईरान के 100 ठिकानों पर इजराइल के 200 विमानों ने ताबड़तोड़ 330 बम क्यों गिराए? इन ठिकानों में सबसे खास है, तेहरान से 220 किलोमीटर दक्षिण में नतांज। दरअसल, नतांज में ईरान की सबसे बड़ी अंडरग्राउंड परमाणु लैबोरेट्री है।
.
NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर में जानेंगे कि आखिर ईरान ने इस लैबोरेट्री में ऐसी क्या टेक्नोलॉजी डेवलप कर ली कि इजराइल ने इतना बड़ा हमला कर दिया…
सवाल-1: इजराइल ने ईरान में कहां-कहां हमले किए, इनमें कौन मारे गए और क्या तबाही हुई?
जवाब: इजराइल ने ईरान पर भारतीय समय के मुताबिक सुबह 5.15 पर एकसाथ 6 शहरों पर हमले किए। तब ईरान में सुबह के साढ़े तीन बज रहे थे।
- हमले में ईरान के सबसे सेना की सबसे ताकतवर कोर इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स यानी IRGC के कमांडर हुसैन सलामी की मौत हो गई है।
- ईरान के दो प्रमुख परमाणु वैज्ञानिक मोहम्मद मेहदी तेहरांची और फरदून अब्बासी भी मारे गए हैं।
- इजराइल ने दावा है कि हमले में ईरान के आर्मी चीफ मोहम्मद बाघेरी और सेना के दूसरे बड़े अधिकारी भी मारे गए हैं।
- हमले में ईरान की राजधानी तेहरान की कई इमारतों को भारी नुकसान पहुंचा है। यहां से 220 किलोमीटर दक्षिण में नतांज की अंडरग्राउंड परमाणु लैबोरेट्री में काला धुआं उठता दिखा है।
इजराइली हमले के बाद ईरान के तेहरान शहर में ऊंचा धुआं उठता देखा गया।
सवाल-2: इजराइल ने इतना बड़ा हमला क्यों किया और इससे हासिल क्या हुआ?
जवाब: इजराइल के हमले का मुख्य उदेश्य नतांज परमाणु लेबोरेट्री को तबाह करना था, ताकि ईरान परमाणु बम ना बना सके। इजराइल, अमेरिका और कई पश्चिमी देशों का दावा है कि ईरान परमाणु बम बनाने के लिए जरूरी 90% प्योर यूरेनियम हासिल करने के काफी करीब है।
यूनाइटेड नेशन्स की वॉच डॉग मानी जाने वाली संस्था इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) के मुताबिक ईरान ने यूरेनियम संवर्धन के लिए हजारों उन्नत सेंट्रीफ्यूज मशीनें स्थापित की हैं। मार्च 2025 तक ईरान के पास करीब 275 किलोग्राम यूरेनियम था, जिसे 60% तक शुद्ध किया जा चुका था। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि ईरान ने 87% तक यूरेनियम शुद्ध कर लिया है। यह यूरेनियम आधा दर्जन परमाणु हथियार बनाने के लिए पर्याप्त है।
हालांकि, ईरान के न्यूक्लियर प्लांट 80 मीटर यानी करीब 26 मंजिल की गहराई में हैं। ईरान की सीमेंट की तकनीक दुनिया में सबसे बेहतरीन है। इसलिए माना जा रहा है कि फिलहाल उसके न्यूक्लियर प्लांट को बहुत नुकसान नहीं पहुंचा है। IAEA ने भी कहा है कि उस प्लांट से फिलहाल कोई रेडिएशन नहीं निकल रहा है।
ईरान की नतांज न्यूक्लियर फैसिलिटी की 2012 में ली गई सैटेलाइट तस्वीर।
सवाल-3: परमाणु बम कैसे बनता है? उसमें यूरेनियम संवर्धन क्यों जरूरी है?
जवाबः परमाणु बन बनाने के लिए यूरेनियम के आइसोटोप U-235 या प्लूटोनियम के आइसोटोप Pu-239 का इस्तेमाल किया जाता है। यह ऐसा आइसोटोप होता है, जो आसानी से टूट जाता है। आइसोटोप यानी ऐसे परमाणु जिनमें इलेक्ट्रॉन और प्रोटॉन की संख्या बराबर होती है, लेकिन न्यूट्रॉन की संख्या अलग होती है। यानी इनकी परमाणु संख्या एक ही होगी, पर परमाणु भार अलग-अलग।
परमाणु बम बनाने के लिए न्यूक्लियर रिएक्टर में U-235 पर न्यूट्रॉन से बमबारी करवाई जाती है। U-235 टूटकर बेरियम और क्रिप्टन में बदल जाता है। इस दौरान 3 न्यूट्रॉन और बेहिसाब एनर्जी निकलती है। ये तीन न्यूट्रॉन फिर से U-235 के परमाणुओं से टकराते हैं। इस तरह ये प्रोसेस लगातार चलती रहती है। इसे ‘चेन रिएक्शन’ कहा जाता है और इस तकनीक को ‘न्यूक्लियर फिजन’ या ‘नाभकीय विखंडन’ कहा जाता है।
U-235 के एक परमाणु के टूटने से करीब 200 मिलियन इलेक्ट्रॉनवोल्ट एनर्जी निकलती है। और इस पूरे चेन रिएक्शन में यूरेनियम के असंख्य परमाणु टूटते हैं। यानी इस रिएक्शन से हजारों टन TNT एनर्जी निकलती है। 6 अगस्त 1946 को अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराया था, जिससे 15 हजार TNT एनर्जी निकली थी। करीब 70 हजार लोग तुरंत ही मारे गए थे।
सवाल-4: ये सेंट्रीफ्यूज टेक्नोलॉजी क्या है, जिस पर हमला किया गया?
जवाबः पढ़ने में भले ही आपको परमाणु बम बनाने की प्रोसेस आसान लग रही हो, लेकिन ऐसा है नहीं। इसे बनाने के लिए बहुत बड़ी फैक्ट्री, सेंटीफ्यूज, न्यूक्लियर रिएक्टर, और सालों का काम लगता है। दुनिया के कुछ चुनिंदा देशों के पास ही इस तरह की फैसिलिटी है।
प्रकृति में ज्यादातर यूरेनियम U-238 के रूप में मौजूद है। महज 0.7% यूरेनियम ही U-235 के रूप में है। परमाणु बम बनाने के लिए U-235 की मात्रा 90% होनी चाहिए। इसे बढ़ाने के लिए सेंट्रीफ्यूज टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जाता है।
सेंट्रीफ्यूज टॉप स्पीड मशीन है, जो हल्के और भारी परमाणुओं को अलग करती है। कुछ वैसे ही जैसे दूध से मलाई अलग करने के लिए मथानी चलाई जाती है। सबसे पहले यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड गैस UF6 को सेंट्रीफ्यूज में डाला जाता है।
इससे यूरेनियम के भारी आइसोटोप यानी U-238 बाहर की ओर चला जाता है और हल्का U-235 अंदर की ओर जमा होता जाता है। इस प्रोसेस को बार-बार दोहराया जाता है, ताकि U-235 की मात्रा बढ़ती जाए। इस प्रोसेस को यूरेनियम इनरिचमेंट या यूरेनियम संवर्धन कहा जाता है।
ईरानी के न्यूक्लियर प्लांट में रखी सेंट्रीफ्यूज मशीनों की एक तस्वीर
सवाल-5: क्या इजराइल परमाणु हथियार बनाने से रोकने के लिए ईरान पर इससे पहले भी हमला कर चुका है?
जवाब: हां, इससे पहले भी ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए कई तरह के हमले हो चुके हैं। माना जाता है कि इन हमलों के पीछे इजराइल और अमेरिका का हाथ रहा है।
- 2010 में अमेरिका और इजराइल ने ईरान के नतांज परमाणु केंद्र पर Stuxnet नामक वायरस से साइबर हमला किया। हजारों सेंट्रीफ्यूज मशीनें नष्ट हो गईं। इसे ऑपरेशन ओलिंंपिक गेम्स का नाम दिया गया था।
- 2021 में नतांज लैबोरेट्री में तोड़फोड़, कई सेंट्रीफ्यूज मशीनें क्षतिग्रस्त हो गईं।
- 2024 में नतांज लेबोरेट्री पर ड्रोन अटैक। कई सेंट्रफ्यूज मशीनें नुकसान पहुंचा था। मगर कुछ दिनों बाद यूरेनियम संवर्धन फिर से शुरू हो गया।
2000 से बाद से ईरान के कई परमाणु वैज्ञानिक मारे जा चुके हैं। 2010 में मसूद अली मोहम्मदी और माजिद शाहरीयारी मारे गए। 2011 में दरयूश रेजाईनेजाद और 2020 में मोहसेन फखरीजादे मारे गए। मोहसेन को ईरानी परमाणु बम प्रोग्राम का आर्किटेक्ट माना जाता है। इसके पीछे इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ बताया गया।
*********
ईरान पर इजराइली अटैक से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें:
NEWS4SOCIALएक्सप्लेनर- इजराइल का ईरान पर अटैक, अमेरिका ने पल्ला झाड़ा: ईरान कैसे करेगा पलटवार, भारत पर क्या असर; 5 सवालों के जवाब
इजराइली पीएम नेतन्याहू ने कहा- ईरान को रोका नहीं गया तो वो कुछ महीनों में ही परमाणु हथियार बना सकता है। अमेरिका ने साफ कर दिया कि वो इस हमले में शामिल नहीं हैं। ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई ने कहा कि इसकी सजा मिलेगी। पूरी खबर पढ़ें…