आज का एक्सप्लेनर: हिंदू जमीन-जायदाद मुस्लिम को क्यों नहीं बेच सकते, गुजरात का डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट क्या है, क्यों प्रशासन ने प्रॉपर्टी सील की?

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आज का एक्सप्लेनर:  हिंदू जमीन-जायदाद मुस्लिम को क्यों नहीं बेच सकते, गुजरात का डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट क्या है, क्यों प्रशासन ने प्रॉपर्टी सील की?
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आज का एक्सप्लेनर: हिंदू जमीन-जायदाद मुस्लिम को क्यों नहीं बेच सकते, गुजरात का डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट क्या है, क्यों प्रशासन ने प्रॉपर्टी सील की?

जनवरी 2025। सूरत में एक हिंदू महिला अपनी प्रॉपर्टी किसी मुस्लिम महिला को बेच रही थी, लेकिन वहां की कलेक्टर ने डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट कानून के तहत उस प्रॉपर्टी को सीज कर दिया। साथ ही सौदे पर रोक लगा दी।

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आखिर ये डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट क्या है, क्या गुजरात में हिंदू और मुस्लिम प्रॉपर्टी का सौदा नहीं कर सकते और इस कानून का मकसद क्या है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

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सवाल-1: जिस हिंदू महिला को अपनी प्रॉपर्टी बेचने से रोका गया, वो मामला क्या है? जवाब: जनवरी 2025 में सूरत में सलाबतपुरा की एक रिहायशी सोसाइटी में रहने वाली हिंदू महिला ने अपनी प्रॉपर्टी को लेकर एक मुस्लिम महिला से सौदा किया। खरीदार महिला ने टोकन अमाउंट भी दे दिया, लेकिन जब सोसाइटी के रहवासियों को इसके बारे में पता चला, तो उन्होंने खरीदार के धर्म पर आपत्ति जताई।

हालांकि, प्रॉपर्टी की मालिक अपने फैसले पर अड़ी रही। उसने सौदे का पूरा पैसा ले लिया। इसके बाद उसने प्रॉपर्टी बेचने के डॉक्यूमेंट्स तैयार करवाए। इसी बीच सोसाइटी के लोगों ने सूरत के कलेक्टर ऑफिस में शिकायत दर्ज की। इसके बाद कलेक्टर नेहा सवानी ने डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट यानी अशांत क्षेत्र अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर प्रॉपर्टी सील कर दी।

सवाल-2: गुजरात में किस कानून के तहत हिंदू और मुस्लिम के बीच प्रॉपर्टी का सौदा नहीं हो रहा? जवाब: गुजरात में डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट, 1991 लागू है। 1986 में गुजरात विधानसभा में इसका विधेयक पेश किया गया और 1991 में यह कानून बना। सरकारी दस्तावेजों में इस एक्ट का पूरा नाम ‘The Gujarat Prohibition of Transfer of Immovable Property and Provision for Protection of Tenants from Eviction from Premises in Disturbed Areas Act’ है।

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इस कानून के तहत डिस्टर्ब्ड एरिया में कोई व्यक्ति किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति के साथ प्रॉपर्टी का सौदा नहीं कर सकता। डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट, 1991 के तहत,

  • जिला कलेक्टर किसी शहर या कस्बे के किसी खास इलाके को डिस्टर्ब्ड एरिया, यानी अशांत क्षेत्र घोषित कर सकता है।
  • डिस्टर्ब्ड एरिया तय करने के लिए अमूमन उस इलाके में सांप्रदायिक दंगों का इतिहास देखा जाता है।
  • कलेक्टर की इजाजत के बाद ही कोई व्यक्ति अपनी प्रॉपर्टी दूसरे धर्म के व्यक्ति को बेच सकता है।
  • इसके लिए प्रॉपर्टी मालिक कलेक्टर को हलफनामा देता है, जिसमें मालिक बताता है कि वह अपनी मर्जी से प्रॉपर्टी बेच रहा है और उसे सही कीमत मिल रही है।
  • हर 5 साल में एक बार डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट में संशोधन किया जाता है।

2019 में समर्पण सोसाइटी में मुस्लिम व्यक्ति को घर देने का विरोध करते पड़ोसी।

सवाल-3: क्या केवल हिंदू जमीन-जायदाद मुस्लिम को नहीं बेच सकते? जवाब: नहीं। अगर कोई प्रॉपर्टी डिस्टर्ब्ड एरिया यानी दंगा प्रभावित इलाके में है, तो इसे बेचने के लिए कलेक्टर की इजाजत लेना जरूरी है। भले ही उस प्रॉपर्टी का मालिक हिंदू हो या मुस्लिम।

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सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट शिरीश उपाध्याय कहते हैं, ‘कानून में कहीं भी हिंदू या मुस्लिम का जिक्र नहीं है। हालांकि, किसी इलाके में हिंदू मेजॉरिटी हैं तो वहां मुस्लिम को घर बेचने से पहले कलेक्टर से परमिशन लेनी होगी। वहीं, किसी इलाके में मुस्लिम मेजॉरिटी में हैं तो भी यही प्रोसेस फॉलो करना होगा।’

नवंबर 2019 में गुजरात के वडोदरा में रहने वाले महेश पलानी ने अपना घर मुस्लिम परिवार को बेचना चाहा। इसके लिए उन्होंने पुलिस वेरिफिकेशन के लिए आवेदन दिया, लेकिन मुस्लिम खरीदार होने के कारण सोसाइटी के लोगों ने मकान दिखाने तक नहीं दिया।

सोसाइटी के लोगों ने डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट का हवाला देते हुए कहा कि कोई भी हिंदू अपनी प्रॉपर्टी मुस्लिम परिवार को नहीं बेच सकता। इस इलाके में हिंदू परिवार रहते हैं, इसलिए यहां मुस्लिम परिवारों को नहीं बसाया जा सकता।

सवाल-4: डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट की जरूरत क्यों पड़ी? जवाब: 1980 के दशक में गुजरात के अलग-अलग शहरों में हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़क रहे थे। 1986 में गुजरात में सबसे ज्यादा दंगे हुए। कई जानें गईं और हजारों लोग बेघर हो गए। जिन इलाकों में हिंदुओं की आबादी ज्यादा थी, वहां से मुस्लिम अपनी जमीनें बेचकर भागने लगे और जिन इलाकों में मुस्लिम ज्यादा थे, वहां से बड़ी संख्या में हिंदुओं का पलायन होने लगा।

तब राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और अमर सिंह चौधरी मुख्यमंत्री। उन्होंने 1986 में डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट सदन में पेश किया। इसमें कहा गया कि कलेक्टर दंगा प्रभावित इलाकों में बेची जा रही प्रॉपर्टी पर गेटकीपर की तरह नजर रखेगा। यानी कलेक्टर की मंजूरी के बिना कोई प्रॉपर्टी का सौदा नहीं कर सकता। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इस एक्ट के पीछे सरकार का मकसद दंगों की वजह से पलायन को रोकना था।

तब इस एक्ट को केवल डेढ़ साल के लिए लागू किया गया था। 1991 में CM चिमनभाई पटेल ने इसे कानून बना दिया। यानी अब डेढ़ साल की लिमिट खत्म हो गई। पांच साल पहले 2020 में BJP सरकार ने इस कानून में बदलाव कर कलेक्टर की शक्तियां बढ़ा दीं।

इससे पहले कलेक्टर हलफनामे के आधार पर प्रॉपर्टी बेचने की इजाजत देता था, लेकिन एक्ट में बदलाव के बाद उसे डील कैंसिल करने तक के अधिकार मिल गए। इसके तहत अगर कलेक्टर को लगता है कि किसी खास इलाके में जनसंख्या संतुलन बिगड़ रहा है, एक ही समुदाय के लोग ज्यादा बस रहे हैं या वहां ध्रुवीकरण की स्थिति हो गई है, तो वह डील कैंसिल कर सकता है।

सवाल-5: अगर हिंदू-मुस्लिम के बीच प्रॉपर्टी का सौदा हुआ, तो क्या होगा? जवाब: गुजरात के अशांत इलाकों में कलेक्टर की इजाजत लिए बिना हिंदू और मुस्लिम व्यक्ति के बीच सौदा होने पर डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट के तहत दोनों पर केस दर्ज किया जाएगा। कानून का उल्लंघन करने पर 3 से 5 साल तक की जेल और 1 लाख रुपए तक का जुर्माना या प्रॉपर्टी की कुल कीमत का 10% हिस्सा देना पड़ेगा। साथ ही प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री रद्द कर दी जाएगी।

इससे पहले 6 महीने की जेल और 10 हजार रुपए जुर्माने का प्रावधान था। 2020 में कानून में संशोधन कर सजा बढ़ा दी गई। अशांत इलाके से 500 मीटर के अंदर की प्रॉपर्टी बेचने के लिए कलेक्टर का नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट यानी NOC अनिवार्य कर दी गई।

सवाल-6: तो क्या इस कानून को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है? जवाब: सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अश्विनी दुबे का कहना है कि इस कानून को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। अगर कलेक्टर के आदेश पर डील रद्द हो गई है, तो प्रॉपर्टी का खरीदार हाईकोर्ट में अपील दायर कर सकता है। इसके बाद जज इस मामले पर फैसला सुनाते हैं। अगर हाईकोर्ट से न्याय नहीं मिलता तो याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट में भी अपील दायर कर सकता है।

गुजरात हाईकोर्ट में इस कानून को कई मामलों में चुनौती दी गई।

गुजरात हाईकोर्ट में इस कानून को कई मामलों में चुनौती दी गई। 2016 से 2025 तक अकेले वड़ोदरा में 5 मामले दर्ज हुए। अदालत ने 3 मामलों में खरीदार के हक में फैसला सुनाया।

2020 में जमीयत-उलेमा-ए-हिंद वेलफेयर ट्रस्ट और निसार अहमद ने गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस कानून को खारिज करने की मांग की थी। अक्टूबर 2023 में गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि वह संशोधनों पर पुनर्विचार कर रही है और नए संशोधन करेगी।

सवाल-7: इस कानून के पीछे की राजनीति क्या है? जवाब: गुजरात के डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट में धर्म का सीधा जिक्र नहीं है। इसमें दंगा, भीड़ की हिंसा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन कई एक्टिविस्ट मानते हैं कि इस एक्ट के जरिए मुसलमानों को कुछ क्षेत्रों तक सीमित किया जा रहा है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के PhD स्कॉलर शारिक लॉलीवाला के मुताबिक, 1986 के दंगों के बाद अहमदाबाद, वडोदरा जैसे शहरों के पॉश इलाकों से मुस्लिम भागकर जुहापुरा, तंदलजा जैसी बस्तियों में बस गए। बाद में जब हालात ठीक हुए तो मुसलमान लौटना चाहते थे, लेकिन डिस्टर्ब एरिया एक्ट ने उनकी वापसी मुश्किल कर दी। अब इस कानून के जरिए मुस्लिमों को कुछ इलाकों तक सीमित करने की कोशिश की जा रही है।

वडोदरा के कांग्रेस नेता नरेंद्र रावत कहते हैं कि जब से BJP सत्ता में आई है, वो मुस्लिमों को हिंदू क्षेत्रों से दूर करना चाहती है। डिस्टर्ब एरिया एक्ट उनके लिए बड़ा हथियार बन गया है। अगर कोई हिंदू मुस्लिम को संपत्ति बेचना चाहता है, तो BJP से जुड़े लोग एक साथ आते हैं और विरोध करते हैं। इससे बेचने और खरीदने वाले फंस जाते हैं।

सवाल-8: भारत के किन राज्यों में डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट लागू है? जवाब: वर्तमान में गुजरात के अलावा भारत के अन्य किसी राज्य में डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट लागू नहीं है। गुजरात के अहमदाबाद, वडोदरा, सूरत, भरूच, गोधरा, आणंद, जैसे शहर इस एक्ट के दायरे में हैं।

हालांकि, आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट यानी AFSPA, डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट से मिलता-जुलता है। AFSPA के तहत किसी इलाके को डिस्टर्ब्ड एरिया घोषित किया जा सकता है। अभी नगालैंड, असम, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्से डिस्टर्ब्ड एरिया घोषित हैं।

इतिहास देखें तो असम ने सांप्रदायिक चुनौतियों से निपटने के लिए 1995 में असम डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट लागू किया था। वहीं 1980 के दशक में पंजाब और चंडीगढ़ में उग्रवादी संगठनों को शांत करने के लिए डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट लागू किया गया था।

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रिसर्च सहयोग- मनोज थायट

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