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अभिजीत अय्यर मित्रा का कॉलम: ​​​​​​​​​​​​​​पहलगाम में जो हुआ, उसके पैटर्न को समझना जरूरी है

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अभिजीत अय्यर मित्रा का कॉलम:  ​​​​​​​​​​​​​​पहलगाम में जो हुआ, उसके पैटर्न को समझना जरूरी है

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अभिजीत अय्यर मित्रा का कॉलम: ​​​​​​​​​​​​​​पहलगाम में जो हुआ, उसके पैटर्न को समझना जरूरी है

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2 घंटे पहले

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अभिजीत अय्यर मित्रा,सीनियर फेलो, आईपीसीएस​​​​​​​​​​​​​​

कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकवादी हमला उन तमाम पैटर्न का अनुसरण करता है, जो अतीत में भी देखे गए हैं और हमें इसका पूर्वानुमान लगा लेना चाहिए था। सवाल ये है कि ये पैटर्न क्या हैं? और हम इन हमलों को कैसे रोक सकते थे?

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सबसे पहले हमें यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि कश्मीर में उग्रवाद अब पहले की तरह नहीं बचा है। हालांकि किसी भी तरह के उग्रवाद के अंतिम दौर में कई महत्वपूर्ण बड़े हमले देखने को मिलते हैं। उदाहरण के लिए, पंजाब के सीएम बेअंत सिंह की हत्या पंजाब में उग्रवाद के लगभग खत्म हो जाने के बाद की गई थी। पहलगाम हमला भी इसी पैटर्न की पुष्टि करता है।

दूसरा संकेत यह था कि पाकिस्तान की ओर से हाल के दिनों में यह दोहराया जा रहा था कि टूरिज्म कश्मीर के ‘भारतीय-उपनिवेशीकरण’ का एक साधन है। उमर अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के श्रीनगर के सांसद रूहुल्लाह मेहदी ने भी कुछ महीने पहले यही बात दोहराई थी।

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इसके परिणामस्वरूप खुफिया एजेंसियों को अंदेशा था कि कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा टूरिज्म के बुनियादी ढांचे को जरूर निशाना बनाया जाएगा। सनद रहे कि कश्मीर में होटलों की कीमतें दिल्ली या मुंबई की होटलों की तुलना में 400-500% अधिक हैं- जिससे भारी मात्रा में धन प्राप्त होता है।

पहले कश्मीर की लगभग 55% आबादी वहां चल रहे कॉनफ्लिक्ट पर निर्भर थी- या तो वह पाकिस्तानी धन से वित्तपोषित होती थी, या भारतीय सरकार के अनुदान से या किसी तरह सुरक्षा बलों को आपूर्ति पर निर्भर रहती थी। आज यह प्रतिशत नगण्य है, जिसका श्रेय मुख्य रूप से पर्यटन को जाता है।

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यदि पाकिस्तान वहां पर उग्रवाद को फिर से शुरू करना चाहता है तो उसके लिए पर्यटन को नष्ट करना महत्वपूर्ण था। लेकिन इसके लिए एक हमला पर्याप्त नहीं होगा- उसे इसके लिए निरंतर अभियान चलाना होगा। लेकिन 2025 में भारतीय सुरक्षा प्रतिक्रियाएं 2019 से पहले की तुलना में कहीं बेहतर हो चुकी हैं।

तीसरा तथ्य यह है कि जब भी कोई अमेरिकी नेता भारत आता है तो कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण के लिए भारत में किसी तरह की अशांति फैलाई जाती है। जब बिल क्लिंटन 2000 में आए थे, तब चट्टीसिंगपोरा नरसंहार हुआ था।

जॉर्ज बुश की 2006 की यात्रा के एक महीने के भीतर कुलहंड और उधमपुर नरसंहार हुआ था। दिल्ली दंगों का समय ट्रम्प की 2020 की यात्रा के ठीक साथ मेल खाने के लिए तय किया गया था। ऐसे में यह स्पष्ट था कि जब उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत आएंगे तो कुछ ना कुछ होगा।

तीनों पहलुओं से यह तो साफ होता है कि हमला होने वाला था। फिर भारतीय खुफिया तंत्र को इसका सुराग क्यों नहीं लगा? क्या यह खुफिया नाकामी थी? समस्या यह है कि हमले के बाद खुफिया जानकारी के स्पष्ट संकेत देखना बहुत आसान है, लेकिन ऐसा पहले करना लगभग असंभव है।

वास्तव में हमले की 500 से 600 कोशिशों में से कम से कम एक सफल हो पाती है। बड़ा सवाल यह है कि क्या हमले से पहले खुफिया एजेंसियों के पास आतंकवादियों के सटीक टारगेट यानी पहलगाम और पर्यटकों के सुराग उपलब्ध थे?

दो और महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं। दिवालियेपन और आंतरिक संघर्षों से जूझ रहा पाकिस्तान भारत से तनाव क्यों बढ़ाना चाहता है और उसको इससे क्या लाभ होगा? वास्तव में, पाकिस्तान घरेलू मोर्चे पर इतनी बुरी स्थिति में है कि उसे भारत पर दोष मढ़ने और अपने लोगों को इस्लाम के नाम पर एकजुट करने के लिए एक बहाने की दरकार है।

अतीत में पाकिस्तान को इससे लाभ ही हुआ है। यह बात पाकिस्तान के लोगों को बाद में पता चली कि उनकी फौज बिना युद्ध लड़े भी कश्मीर मुद्दे को दुनिया के सामने ला सकती है। भारत से तो उनकी फौज तीन युद्ध हार चुकी है।

वास्तव में, अगर भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की प्रक्रिया चलती है तो पाकिस्तानी फौज भरसक कोशिश करती है कि उसे नाकाम कर दिया जाए। ऐसा इसलिए है क्योंकि पाकिस्तान का वजूद संघर्ष जारी रहने पर निर्भर करता है, इसे किसी भी सार्थक तरीके से हल करने पर नहीं।

एक समय पाकिस्तान में हर संप्रदाय- हनफी, सलाफी, देवबंदी, बरेलवी आदि के अपने और स्वतंत्र आतंकवादी संगठन थे। लेकिन आज इनमें से कोई भी अकेले इस तरह के हमले करने में सक्षम नहीं रह गया है। यह भारत द्वारा कश्मीर के सामान्यीकरण की प्रभावशीलता का सबसे बड़ा प्रमाण है। अलबत्ता हमें बहकावे में नहीं आना चाहिए। पहलगाम नरसंहार हमें बताता है कि अगर हम चौकस नहीं रहेंगे, तो आतंकवाद कभी भी फिर से सक्रिय हो सकता है।

पाकिस्तान की ओर से हाल में यह दोहराया जा रहा था कि टूरिज्म कश्मीर के ‘भारतीय-उपनिवेशीकरण’ का एक साधन है। खुफिया एजेंसियों को अंदेशा था कि कश्मीर में टूरिज्म के बुनियादी ढांचे को निशाना बनाया जाएगा। (ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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