अखिलेश यादव यूपी में नहीं रोक पा रहे समाजवादी पार्टी का पतन, शहरों की सरकार बनाने में काम नहीं आया समीकरण

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अखिलेश यादव यूपी में नहीं रोक पा रहे समाजवादी पार्टी का पतन, शहरों की सरकार बनाने में काम नहीं आया समीकरण

अखिलेश यादव यूपी में नहीं रोक पा रहे समाजवादी पार्टी का पतन, शहरों की सरकार बनाने में काम नहीं आया समीकरण

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के नगर निकायों में समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका लगा है। नगर निगम से लेकर नगर पंचायत तक के चुनाव में पार्टी अंदरूनी अंतर्विरोधों का सामना करती दिख रही है। प्रदेश में भाजपा का विकल्प के रूप में खुद को पेश करते अखिलेश यादव चुनाव से पहले बड़े दावे कर रहे थे। लेकिन, नगर निकाय चुनाव के परिणाम ने उनके दावों की असलियत सामने ला दी है। वर्ष 2014 के बाद से पार्टी लगातार चुनावों में हार रही है। लोकसभा चुनाव 2014 में सपा ने 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं, विधानसभा चुनाव 2017 में पार्टी 47 सीटों पर सिमटी थी। यूपी नगर निकाय चुनाव 2017 में सपा का 16 नगर निगमों में हुए चुनाव में खाता नहीं खुल सका था। वहीं, 198 नगरपालिका परिषद में से 45 और 438 नगर पंचायतों में से 83 में पार्टी का चेयमैन चुना गया।2019 में हुए लोकसभा चुनाव में सपा एक बार फिर 5 सीटों पर सिमटी। यूपी चुनाव 2022 में पार्टी को 111 सीटों पर जीत मिली। अब यूपी नगर निकाय चुनाव 2023 में भी पार्टी कोई बड़ा करिश्मा करती नहीं दिखी है। प्रदेश के 17 नगर निगम में सपा का खाता नहीं खुला। 199 नगरपालिका परिषद में 42 और 544 नगर पंचायतों में 86 पर सपा अपना चेयरमैन बनान में कामयाब हो पाई। मतलब, पार्टी 2017 के चुनाव परिणामों से आगे बढ़ती नहीं दिख पा रही है।

विधानसभा में भी नहीं मिली सफलता

मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव में डिंपल यादव की बड़ी जीत के बाद समाजवादी पार्टी काफी उत्साहित दिख रही थी। दावे लोकसभा चुनाव में बड़ी जीत के किए जा रहे थे। लेकिन, नगर निकाय चुनाव ने पार्टी के लिए दिक्कत बढ़ा दी है। नगर निगम चुनावों में शून्य पर सिमटने के बाद पार्टी ने स्वार विधानसभा सीट भी गंवा दी। रामपुर की स्वार विधानसभा पर आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम ने जीत दर्ज की थी। सजा के बाद यह सीट छिनी तो फिर उप चुनाव में भाजपा गठबंधन के तहत अपना दल एस ने इस सीट पर जीत दर्ज कर सपा का दुर्ग ढहा दिया। अपना दल (एस) ने छानबे सीट पर हुए उप चुनाव में भी सपा को आगे बढ़ने से रोक दिया।

नेतृत्व पर लगातार उठ रहे सवाल

समाजवादी पार्टी लगातार 2014 से हार रही है। हालांकि, अखिलेश ने 2017 में अपने पिता मुलायम सिंह यादव का तख्तापलट कर सपा की बागडोर अपने हाथ में ले ली। इसके बाद से तो पार्टी को हर चुनाव में हार मिली है। पार्टी 2017 के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार गई और मुश्किल से 47 सीटों के साथ रह गई थी। सपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा था और दोनों दलों को हार का सामना करना पड़ा था।

2019 के लोकसभा चुनावों में, अखिलेश ने बहुजन समाज पार्टी के साथ हाथ मिलाया, एक ऐसा निर्णय जिसे पार्टी के वरिष्ठों ने दृढ़ता से अस्वीकार कर दिया था। सपा को गठबंधन से कोई फायदा नहीं हुआ, बसपा को 10 लोकसभा सीटें मिल गई। चुनाव के तुरंत बाद गठबंधन टूट गया। बाद के महीनों में, सपा उप चुनावों में अपनी आजमगढ़ और रामपुर सीटें भी भाजपा से हार गई।

काम नहीं कर रहा गठबंधन

यूपी चुनाव 2022 में सपा ने राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) सहित छोटे दलों के साथ गठबंधन किया, लेकिन यह भी काम नहीं आया। 2023 के निकाय चुनावों से पहले, अखिलेश ने अपने अलग हो चुके चाचा शिवपाल यादव के साथ अपने संबंध सुधारे, लेकिन यह प्रयास बहुत देर से और बहुत कम साबित हुआ। पार्टी कार्यकर्ता अब अखिलेश यादव की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा रहे हैं और क्या उनमें उत्तर प्रदेश में भाजपा के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने की क्षमता है। लोकसभा चुनाव नजदीक आते ही सपा अध्यक्ष की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं।

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