अखिलेश बोले-पैसा नहीं बंटा तो IAS को सस्पेंड किया: अभिषेक प्रकाश को 3 अफसर बचा रहे थे, योगी की सख्ती के आगे नहीं चली – Uttar Pradesh News h3>
‘जब तक पैसा बराबर बंट रहा था, तब तक सब सही था। जैसे ही पैसों में खींचतान हुई, तो IAS अफसर को सस्पेंड कर दिया गया। इससे पहले सरकार की नाक के नीचे भ्रष्टाचार का खेल फल-फूल रहा था। ये अधिकारी भ्रष्टाचार कर फरार हो गया। लेकिन, खबरें हैं कि वह सीएम ऑफिस म
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यह बात सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने रविवार को लखनऊ में कही। अखिलेश ने यूपी के ताकतवर आईएएस और इन्वेस्ट यूपी के सीईओ अभिषेक प्रकाश सस्पेंशन मामले में भाजपा पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा- भाजपा सरकार यूपी को लूट रही है। ऐसा कोई जिला नहीं बचा, जहां बीजेपी ने लूटपाट न की हो।
IAS अभिषेक प्रकाश को लेकर सपा समेत समूचा विपक्ष हमलावर होता जा रहा है। विपक्ष को अचानक से मुद्दा मिल गया है। इसी के चलते योगी सरकार भी अब कड़ा रुख अपना रही है। अभिषेक प्रकाश के खिलाफ ओपन विजिलेंस की जांच शुरू करा दी है। इसका मतलब है कि कोई भी विजिलेंस में शिकायत कर सकता है। जितनी शिकायतें आएंगी, उतनी ही अफसर की मुसीबतें बढ़ेंगी।
सवाल यह उठ रहा है कि तमाम शिकायतों के बाद भी IAS को बचा कौन रहा था?
अभिषेक प्रकाश लखनऊ, बरेली समेत 5 जिलों में डीएम भी रहे हैं।
IAS का मामला सामने आते ही सरकार ने तुरंत एक्शन ले लिया। उन्हें सस्पेंड कर दिया। बताया जा रहा है कि यूपी सरकार को सीधे भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कॉल कर IAS के खिलाफ शिकायत की। शिकायत सही और प्रभावशाली नेता की होने के कारण सरकार ने भी तुरंत एक्शन लिया।
दरअसल, भटगांव जमीन अधिग्रहण घोटाले में भी लखनऊ के तत्कालीन डीएम अभिषेक प्रकाश का नाम आया था। राजस्व परिषद ने मामले में अभिषेक प्रकाश को दोषी भी करार दिया था। लेकिन, तमाम शिकायतों और आरोपों के बाद अभिषेक पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।
IAS अभिषेक का रुतबा इतना था कि वे जनप्रतिनिधियों की नाराजगी के बाद भी लखनऊ के डीएम और एलडीए के वीसी बने रहे। डीएम पद से हटने के बाद उन्हें इन्वेस्ट यूपी का CEO बनाया गया। साथ ही औद्योगिक विकास विभाग के सचिव की जिम्मेदारी भी दी गई।
जमीन अधिग्रहण मामले भी गिरेगी गाज अब सरकार अभिषेक प्रकाश के खिलाफ जांच का दायरा बढ़ा रही है। शासन अब उनकी अध्यक्षता में बनी मूल्यांकन समिति की ओर से पहले दी गई तमाम मंजूरियों की भी जांच की कराएगा। अभिषेक प्रकाश ने 2 साल में 10 लाख करोड़ से ज्यादा के निवेश प्रस्तावों को मंजूरी दी थी।
इसके अलावा अभिषेक प्रकाश पर लखनऊ डिफेंस कॉरिडोर में भूमि अधिग्रहण में धांधली के मामले में भी कार्रवाई करने की तैयारी है। राजस्व परिषद की ओर से पेश 83 पेज की जांच रिपोर्ट का संज्ञान शासन ने ले लिया गया है। जल्द ही अभिषेक को चार्जशीट दी जा सकती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नियुक्त विभाग को भी अभिषेक प्रकाश के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
राजस्व परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष डॉ. रजनीश दुबे ने जांच रिपोर्ट में क्रय समिति के अध्यक्ष, जिलाधिकारी और सदस्य सचिव तहसीलदार सरोजनीनगर को सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराया गया है। इसमें कहा गया है कि सरकारी तौर पर दर निर्धारण और भूमि के क्रय करने की कार्रवाई की गई। जिससे इस प्रकरण में अनियमित भुगतान हुआ और शासकीय धन का नुकसान हुआ।
आला अफसरों को नहीं मिला बचाव का मौका शासन के सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस कार्रवाई को पूरी तरह गुप्त रखा। सीएम ने मामले की जांच एसटीएफ से कराई। एसटीएफ ने शिकायत की पुष्टि और दलाल निकांत जैन को गिरफ्तार करने के बाद सीएम को सूचना दी गई। सीएम योगी ने तुरंत अभिषेक प्रकाश को सस्पेंड करने का आदेश दे दिया।
जानकार बताते हैं कि शासन के 3 सबसे ताकतवर अफसरों ने अभिषेक को बचाने का प्रयास किया। लेकिन, मुख्यमंत्री के सख्त रवैये के आगे वह सस्पेंशन नहीं रोक सके। हालांकि एफआईआर में सीधे अभिषेक प्रकाश का नाम शामिल होने से बचाने में अफसर कामयाब हो गए।
यह निकांत जैन है, जिसे पुलिस ने गिरफ्तार किया है।
IAS अभिषेक जहां तैनात रहे, वहीं बनाई प्रॉपर्टी, 700 बीघा जमीन, लखनऊ में कई बंगले
अभिषेक ने सोलर इंडस्ट्री प्रोजेक्ट की मंजूरी के लिए बिजनेसमैन से 5 फीसदी कमीशन मांगा था। कमीशन न मिलने पर प्रोजेक्ट की फाइल रोक दी थी। उन्होंने अभिषेक प्रकाश ने कमीशन निकांत जैन के जरिए बिजनेसमैन से डिमांड की थी। बिजनेसमैन विश्वजीत दत्ता ने इसकी शिकायत सीएम योगी से की। सीएम ने मामले की STF से जांच कराई थी। इसके बाद एक्शन लिया।
सूत्रों के मुताबिक, IAS अभिषेक जहां भी तैनात रहे, वहां पर उन्होंने प्रॉपर्टी बनाई। लखीमपुर और बरेली में 700 बीघा जमीन खरीदी। लखनऊ में कई बंगले बनवाए। उन पर ब्रह्मोस मिसाइल फैक्ट्री के नाम पर 20 करोड़ के घोटाले का आरोप भी लगा है।
अभिषेक औद्योगिक विकास विभाग के सचिव और इन्वेस्ट यूपी के CEO थे। एक्शन के बाद से अंडरग्राउंड हो गए हैं। उनके करीबी बाबू निकांत जैन को STF ने गिरफ्तार किया है। अभिषेक प्रकाश 31 अक्टूबर 2019 से 7 जून 2022 तक लखनऊ के जिलाधिकारी रहे। इसके अलावा, 23 अक्टूबर 2020 से 25 जुलाई 2021 तक उन्होंने LDA के वीसी की जिम्मेदारी भी संभाली।
डीएम बनते ही अंसल में दो प्लॉट को जोड़कर बनाई कोठी अभिषेक प्रकाश ने लखनऊ का जिलाधिकारी और लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) का वीसी बनते ही अंसल सुशांत गोल्फ सिटी में बड़ी कोठी बनवाई। इसके लिए अंसल ने ई-ब्लॉक में 2812 और 2153 गज के दो प्लॉट जोड़कर अभिषेक के नाम आवंटित किए। अभिषेक ने दोनों प्लॉट पर भव्य कोठी तैयार की है। दोनों प्लॉट की रजिस्ट्री 1 करोड़ 2 लाख रुपए में हुई। प्लॉट की रजिस्ट्री में स्टांप शुल्क 7.12 लाख रुपए अदा किया गया।
अभिषेक प्रकाश की यह तस्वीर साल 2023 में हुई यूपी ग्लोबल समिट के दौरान की है।
कैबिनेट तक जाता है मामला इन्वेस्ट यूपी के सूत्रों के मुताबिक, छोटे निवेशकों के निवेश प्रस्ताव को इन्वेस्ट यूपी के सीईओ की अध्यक्षता में बनी मूल्यांकन कमेटी की मंजूरी लेनी होती है। इसके बाद प्रोजेक्ट मुख्य सचिव और अवस्थापन एवं औद्योगिक विकास विभाग के अध्यक्ष मनोज कुमार सिंह की अध्यक्षता में बनी हाईपावर कमेटी के सामने पेश होता है। हाईपावर कमेटी की मंजूरी के बाद प्रस्ताव कैबिनेट में पेश किया जाता है।
बड़े प्रोजेक्ट पर 5 फीसदी, छोटे पर 10 फीसदी कमीशन मूल्यांकन कमेटी प्रोजेक्ट पर मिलने वाली कुल कैपिटल सब्सिडी का आकलन भी करती थी। छोटे निवेशकों से कुल कैपिटल सब्सिडी का 10 फीसदी और बड़े प्रोजेक्ट पर सब्सिडी की राशि का 5 फीसदी तक लेन-देन तय होता है। एसएईएल सोलर पी6 प्रा.लि. का कुश निवेश 8000 करोड़ रुपए का था। लेकिन, उसे सरकार के 400 करोड़ रुपए से अधिक सब्सिडी मिलनी थी। इन्वेस्ट यूपी के सूत्रों के मुताबिक, कमीशन सब्सिडी के 5 फीसदी पर तय हुआ था।
कई साल से जमे हैं अधिकारी इन्वेस्ट यूपी में कई अधिकारी और कर्मचारी एक ही पद पर कई सालों से जमे हैं। वहां तैनात कर्मचारियों-अधिकारियों का रसूख इतना मजबूत है कि कोई तबादला नीति उन पर लागू नहीं होती। सोलर एनर्जी कंपनी एसएईएल को अनुमति देने के बदले रिश्वत मांगने के मामले में कई और अधिकारियों की भूमिका हो सकती है।
अब सवाल उठ रहे हैं कि पत्रावली में तत्कालीन सीईओ अभिषेक प्रकाश के अलावा अन्य किन अधिकारियों के दस्तखत हैं। एक बार निवेश प्रस्ताव आगे बढ़ जाने के बाद फिर दोबारा मूल्यांकन समिति के सामने रखने का निर्णय में और कौन शामिल थे, यह भी बड़ा सवाल है।
माना जा रहा है कि मूल्यांकन समिति के अंतिम मिनट्स (कार्यवृत्त) में बदलाव किसके कहने पर किया गया। अभिषेक प्रकाश के खिलाफ इसी आधार पर निवेशक ने एफआईआर भी करवाई। इन्वेस्ट यूपी के लिए सलाह देने वाली फर्म से जुड़े लोग की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता। निवेश प्रस्ताव की लिस्टिंग से लेकर अन्य कई कार्य इसी के जरिए किए जाते हैं।
बड़ सकती है अभिषेक की मुश्किलें शासन ने अभिषेक प्रकाश के खिलाफ ओपन विजिलेंस जांच के आदेश दिए हैं। इसमें अब कोई भी पीड़ित साक्ष्य के साथ विजिलेंस में अभिषेक के खिलाफ शिकायत कर सकता है। जानकार मानते हैं कि जितनी शिकायतें बढ़ेंगी, अभिषेक की मुश्किल भी उतनी ही बढ़ेगी।
क्या अभिषेक के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल होगा? अभिषेक प्रकाश के निलंबन और विजिलेंस जांच के बाद अब सवाल उठ रहा है कि क्या उनके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल किया जाएगा? अगर 6 महीने में आरोप-पत्र जारी नहीं किया गया तो वह खुद बहाल हो जाएंगे।
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